कोरबा:- इंडस पब्लिक स्कूल दीपिका के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि महिला समानता दिवस के अवसर पर विद्यालय की शिक्षिकाओं को उनके अदम्य साहस, समानता, सहभागिता हेतु टीचर्स महिलाओं को सशक्तिकरण हेतु किया सम्मानित किया गया। आगे डॉक्टर गुप्ता नें महिला समानता दिवस के मद्देनजर सामाजिक जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपने विचार रखते हुवे कहा महिला समानता दिवस (Women’s Equality Day) प्रत्येक वर्ष ’26 अगस्त’ को मनाया जाता है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की। भारत में आज़ादी के बाद से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त तो था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का क़ानूनी अधिकार 73 वे संविधान संशोधन के माध्यम से स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के प्रयास से मिला। इसी का परिणाम है की आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है। भारत ने महिलाओं को आज़ादी के बाद से ही मतदान का अधिकार पुरुषों के बराबर दिया, परन्तु यदि वास्तविक समानता की बात करें तो भारत में आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति गौर करने के लायक है। यहाँ वे सभी महिलाएं नज़र आती हैं, जो सभी प्रकार के भेदभाव के बावजूद प्रत्येक क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं, और सभी उन पर गर्व भी महसूस करते हैं। परन्तु इस कतार में उन सभी महिलाओं को भी शामिल करने की ज़रूरत है, जो हर दिन अपने घर में और समाज में महिला होने के कारण असमानता को झेलने के लिए विवश है। चाहे वह घर में बेटी, पत्नी, माँ या बहन होने के नाते हो या समाज में एक लड़की होने के नाते हो। आये दिन समाचार पत्रों में लड़कियों के साथ होने वाली वारदातों को पढ़ा जा सकता है, परन्तु इन सभी के बीच वे महिलाएं जो अपने ही घर में सिर्फ इसीलिए प्रताड़ित हो रही हैं, क्योंकि वह एक औरत है। पिछले एक दशक में महिलाओं ने समाज मे एक अभूतपूर्व उपलब्धियां हांसिल कर दिखलाई है, आज महिलाएं पुरुषों की तरह हर फील्ड में कंधे से कंधा मिलाकर हर कार्य को कुशलता से करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, एक दौर था जब भारत मे महिलाओं को महज घर की चार दीवारों तक ही सीमित रखा जाता था, इस तरह से उनकी आकांक्षाओं को उनके भावनाओं को उनकी योग्यताओं को कार्य कुशलताओं को उनके प्रतिभाओं को रोक कर रखा गया था, इससे उनके अंदर जो काबिलियत थी वह समाज के सामने पूर्णतया प्रत्यक्ष नहीं हो पाती थी, उनकी अंदर निहित प्रतिभाएं चारदीवारी के अंदर ही दम तोड़ देती थी पहले महिलाओं को घर के कामकाज किचन के कामकाज खाना बनाना बर्तन मांजना साफ सफाई इत्यादि कार्य तक ही महिलाओं को सीमित रखा गया था यह समाज की ओनझि मानसिकता थी, जिन्होंने उनके टैलेंट को प्रत्यक्ष कभी होने ही नहीं दिया था, तो पहला तो उन्हें निखरने का मौका नहीं मिला उसके बाद ऊपर से उन्हें कमजोर समझा जाने लगा, उन्हें घर संभालने, बच्चों के परवरिश में ध्यान देने के अलावा बाहरी किसी कार्य मे इन्वॉल्व होने नहीं दिया जाता था, पर पिछले एक दशक में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिले हैं व महिलाओं नें प्रत्येक फील्ड में अपना परचम लहराया है न केवल परचम लहराए बल्कि प्रत्येक फील्ड में अपनी दक्षता अपनी प्रतिभा कार्यकुशलता, इमानदारी, त्याग व हार्ड वर्किंग, समर्पण सभी तरह से अपनी प्रतिभाओं को अपने गुणों को समाज के सामने प्रत्यक्ष कर दिखलाई पहले महिलाएं कमाने के लिए घर से बाहर नहीं जाया करती थी बल्कि पुरुष घर से बाहर कमाता था व महिलाओं को घर संभालने की जिम्मेदारी रहा करती थी परंतु आज के दौर में महिला व पुरुष दोनों ही हर फील्ड में देखे जा रहे हैं फिर चाहे वो डॉक्टर ही हो या वकालत या टीचिंग या फिर साइंटिस्ट या तो फिर इंजीनियरिंग या अन्य कोई फील्ड हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपना परचम लहराया जो कि काबिले तारीफ है और इस तरह से धीरे-धीरे सचमुच में समाज के अंदर देखने को मिल रहा है कि महिलाएं अब समानता से समाज में कर क्षेत्र हर कार्य में भागीदारी निभा रही है, तो निश्चित तौर पर महिला समानता दिवस सामाजिक उत्थान लाने में कारगर साबित हुआ तथा महिलाओं के प्रति सामाजिक वैचारिक भिन्नता को समान भाव में बदलने में कारगर रहा, जैसा कि आज प्रत्येक फील्ड में हम देख सकते हैं वैसे तो भारत में आदिकाल में महिलाओं को देवियों के रूप में स्तुति व वंदना भारतीय समाज करते चला आ रहा है परंतु अभी से एक या दो दशक पिछले की भारत में महिलाओं की स्थिति अत्यंत ही दयनीय रही पर अब पिछले एक दशक से उनको समाज में बराबरी का स्थान मिलता नजर आ रहा है यह उनके ही सेवा व समर्पण, हार्ड वर्किंग की वजह से उन्होंने अपनी समाज में बराबरी का परचम लहराया अन्यथा आज भी कई लोग इसी समाज में दिख जाते हैं जिनके मन में इस तरह की भावना होती है कि महिलाएं अमुक काम नहीं कर सकती या फिर महिलाओं को ऐसा काम नहीं करना चाहिए महिलाओं को घर में चारदीवारी में कैद रहकर केवल परिवार संभालने घर संभालने की जिम्मेदारी तक सीमित रहना चाहिए इस तरह से आज भी कई लोग इस मानव समाज में नेगेटिव सोच के दिखाई देते हैं जो आज भी मानते हैं कि महिलाओं को बाहर पुरुषों की तरह कार्य नहीं करना चाहिए खैर यह तो व्यक्ति विशेष की नकारात्मकता से परिपूर्ण नेगेटिव व्यक्तिगत विचार हैं, मगर सत्य जो है अगर उस नजरिए से देखा जाए तो ना केवल महिला या पुरुष का बल्कि अन्य जेंडर का भी आज समाज में बराबर का हर क्षेत्र में हर कार्य में समानता का अधिकार है तो लिंग भेदभाव की भावना मन में रखना पहला तो संविधान के तौर पर भी क्राइम है दूसरा हमारे सामाजिक स्तर को भी गिराता है वह संकीर्ण मानसिकता को भी दर्शाता है तो हमें अपनी मानसिकता को संकीर्ण नहीं बल्कि ब्रॉड रखने की आवस्यकता है, महिलाओं को मन से एक्सेप्ट करते हुवे लिंगभेद ना रखते हुवे उन्हें आगे बढ़ने के लिये प्लेटफार्म देने की आवस्यकता है, सोसाइटी को मन से महिलाओं को एक्सेप्ट करने की आवश्यकता है कि हां महिलाओं को भी हर चीज में बराबरी का अधिकार है भारतीय संविधान प्रत्येक भारत के नागरिक को समानता का अधिकार देता है, वहीं भारत की संस्कृति भी कहती है कि वाशुधैव कुटुम्भकम, तथा हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई आपस मे हैं भाई भाई इस तरह से समानता का अधिकार वहां भी दिखता है, महिला मां के रूप में बहन के रूप में धर्मपत्नी के रूप में बेटी के रूप में हर तरह से परिवार व समाज मे बराबरी से सहयोग प्रदान कर सामाजिक योगदान प्रदान कर रही है महिला के बगैर इस समाज की कल्पना ही नहीं कि जा सकती वह जननी है हर पुरुष की यह समाज उन्ही से पनपा है तो उनके प्रति सम्मान की भावना रखना हमारा कर्तव्य है कभी भी हमें उनके प्रति नेगेटिव भाव नहीं रखना चाहिए जिस तरह से हम अपने घर पर अपनी मां बहन से व्यवहार करते हैं बिल्कुल उसी तरह हमें बाहर जो भी महिलाएं दिखें उन्हें सम्मान की भावना से हु देखना चाहिए, हमे अपने दृष्टिकोण को महिलाओं के प्रति सकारात्मक रखना चाहिए।
आगे इंडस पब्लिक स्कूल के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने बतलाया कि इस तरह आज महिला समानता दिवस के अवसर पर विद्यालय की शिक्षिकाओं को उनके वैश्विक त्रासदी के दौरान दिखलाए गए अदम्य साहस, उनको समानता प्रदान करने के मकसद से समाज मे महिलाओं के प्रति सकारात्मक सुरक्षित माहौल क्रिएट करने के उद्देश्य से, उनकी सामाजिक सहभागिता हेतु, महिला शशक्तिकरण के मद्देनजर उनकी समर्पण भावना हेतु सम्मानित किया गया आगे डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि समाज को महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए, स्त्री की उन्नति ही राष्ट्र की उन्नति है, समाज मे व्याप्त लिंग भेदभाव मिटाने की दिशा में काम करना चाहिए तथा प्रत्येक को मन में नारियों के प्रति समानता के भाव के बीज बोने चाहिए ज्ञात हो कि इंडस पब्लिक स्कूल प्रतिवर्ष महिला समानता दिवस के अवसर पर जागरूकता बिखेरता आया है, परंतु इस वर्ष वैश्विक त्रासदी कोविड-19 के दौरान जबकी संपूर्ण देश में लॉकडाउन की स्थिति बनी हुई है ऐसी विपरीत परिस्थिति में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुवे, मास्क लगाकर सेनेटाइजर का उपयोग करते हुवे विद्यालय की शिक्षिकाओं को महिला समानता दिवस के अवसर पर सम्मानित किया गया, साथ ही सामाजिक उत्थान बाबत प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से महिला समानता दिवस के अवसर पर सामाजिक जागरूकता बिखेरकर सामाजिक योगदान प्रदान किया जा रहा है, निश्चित तौर पर ऐसे आयोजन से समाज मे महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृश्टिकोण रखने हेतु कारगर साबित होते हैं, लोगों को अपने जीवन काल में महिला पुरुष का लिंग भेद ना रखते हुए प्रत्येक को समानता की दृष्टि से देखना चाहिए व एक दूसरे को सहयोग प्रदान करते हुए समानता की भावना से एक दूसरे को आगे बढ़ाने का कार्य करना चाहिए जिससे सामाजिक उत्थान होगा, समाज का उत्थान महिलाओं की प्रतिभाओं को कुचलने में नहीं बल्कि उनको समाज के बीच उनकी उन्नति हेतु प्लेटफार्म मुहैया करवाकर उनको सहयोग प्रदान कर उन्हें आगे बढ़ाकर बराबरी में आने के लिये मौका प्रदान करने में है प्रतिभाएं कार्यकुशलताएं महिलाओं में भी है बशर्ते उन प्रतिभाओं व कार्यकुशलता को आज तक प्रत्यक्ष होने नहीं दिया गया था और आज जब उनकी प्रतिभाएं प्रत्यक्ष हो रही हैं तो महिलाओं का लोहा हर फील्ड में माना जा सकता है, की निश्चित तौर पर वह आज पुरुषों के बराबरी में हर फील्ड में नजर आ रही है आगे डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि हम तो दुआ करते हैं कि इसी तरह समाज में समानता की भावना बनी रहे व एक दूसरे को आगे बढ़ाने की भावना रखते हुवे सामाजिक उत्थान होता रहे और इस तरह से हमारा भारत देश आगे बढ़ता रहे।