कोरबा:- किसी देश में कोई बड़ा बदलाव करना हो तो सबसे पहले शिक्षा नीति को बदलना होता है जैसा कि भारत को विश्व गुरु बनना है तो निश्चित तौर पर पुरानी शिक्षा पद्धति में बदलाव कर नई शिक्षा पद्धति की आवश्यकता थी जो कि अब होने जा रही है 29 जुलाई 2020 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दी है, एचआरडी मिनिस्टर ने इसकी सूचना देते हुए प्रेस रिलीज जारी की है जिसके अनुसार भारतीय शिक्षा पद्धति में आजादी के उपरांत पहला बदलाव सन 1968 में किया गया था तदोपरांत दूसरी मर्तबा बदलाव 1986 में किया गया जिसे 1992 में संशोधन किया गया और अब यह तीसरा बदलाव 2020 में इसे केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी दे दी गई है और संसद में इसे पास किया जाना बाकी रह गया है लोगों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि पूर्व की शिक्षा पद्धति व नवीन शिक्षा पद्धति में क्या अंतर रहेगा जिसे लेकर हमारे संवाददाता ने इंडस पब्लिक स्कूल दीपिका के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता से मुलाकात की तथा पूर्व की शिक्षा पद्धति व नवीन शिक्षा पद्धति में अंतर के साथ सोशल मीडिया व मौखिक तौर पर चल रहे परिजनों के सवालों के जवाब पाने जब हमारे संवाददाता ने इंडस पब्लिक स्कूल के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता से मुलाकात किये व कुछ अत्यंत ही आवस्यक जानकारी हांसिल किये जिसे आप सभी से सांझा कर रहे हैं

1️⃣ नई शिक्षा निति में ऐसे कौन सी खूबियां है जो पुरानी शिक्षा नीति की कमियों की भरपाई करती हो – नई शिक्षा नीति में बच्चों के सर्वांगीण विकास पर फोकस किया गया है, तोता रटंत आदतों से छुटकारा दिलवाने ज्ञान को प्रैक्टिकल जीवन मे अप्लाई कर जीवन जीने तथा समस्यायों से भागने के बजाए समाधान निकालने पर, निर्णय शक्ति, परखने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, सहयोग की शक्ति सहनशक्ति इत्यादि मानवीय गुणों के विकास कर सर्वांगीण विकास 360 डिग्री विकास जिसमे व्यवहार, मानसिक, सामाजिक, मेटेरिअलिस्टिक सारे एस्पेक्टस से विकास बच्चों के विकास पर फोकस किया जावेगा, डीजी लॉकर की व्यवस्था, कॉमन एप्टीट्यूट टेस्ट, एम फिल का खात्मा, पांचवी तक हिंदी कंपल्सरी, विश्वविद्यालय से कॉलेजों की मान्यता धीरे धीरे बन्द की जावेगी जिससे यूनिवर्सिटी को रिसर्च ओरिएंटेड बनाया जा सके अभी यूनिवर्सिटी कॉलेजों के एग्जाम ऑर्गेनाइज करवाने में ही समय खत्म कर लेती है

2️⃣ क्या नई शिक्षा नीति के अनुसार हिंदी की पढ़ाई पांचवी तक सरकारी तथा प्राइवेट दोनों ही स्कूलों में कंपल्सरी तौर पर लागू होगी – इस सवाल का जवाब देते हुवे डॉ संजय गुप्ता (आई.पी.एस. दीपका)में बतलाया की कक्षा पहली से पांचवी तक मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई की जावेगी पहली से पांचवी तक की शिक्षा अंग्रेजी में पढ़ाई की अनिवार्यता नहीं रहेगी, ऐसा इसलिय की अन्य भाषा की अपेक्षा मातृभाषा में पढ़ाई करने पर ज्ञान की धारणा त्वरित होती है, 20 विकाससील देशों के तरफ गौर फरमाएं तो उनके एजुकेशन सिस्टम में यह खूबियां देखने को मिलती है

3️⃣ ट्यूशन व कोचिंग से छुटकारे प्राप्त करने के लिये नई शिक्षा पद्धति में क्या हैं प्रबंध – जब फाउंडेशन ही मजबूत किया जावेगा तो आगे भी वह नजर आएगी 5 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों के मन मे जिस तरह के फाउंडेशन डाले जाएं वह उसमे ढल जाते हैं अब बच्चों को 3 से 5 वर्ष की आयु में प्रिप्राइमरी व 5 से 8 वर्ष पहली व दुसरीं कक्षा में उन्हें खेल खेल में सबकुछ सिखाया जाएगा ऐसा जिक्र नई शिक्षा पद्धति में मिलता इस नींव मजबूत होगी व आगे चलकर ट्यूशन की आवस्यकता कम होगी, इसके अलावा नौवीं से 12वीं तक सेमेस्टर के आधार पर परीक्षाएं होंगी 1 साल में 2 सेमेस्टर, हर 6 महीने में एक परीक्षा, दोनों सेमेस्टर के अंकों को जोड़कर फाइनल मार्कशीट तैयार की जाएगी, जिसमे कक्षा के अन्य क्षेत्रों के भी मत शामिल होंगे, अब एक छात्र के तौर पर पूरे वर्ष पढ़ाई करनी होगी पहले क्या था कि कई लोग फाइनल एग्जाम्स के दो-तीन महीने पहले पढ़ाई करना आरंभ करते थे और उसमे से कुछ लोग रटकर कुछ अच्छे मार्क्स लेकर भी आ जाते थे और इस तरह से तो तोता रटंत पद्धति फॉलो करने से ज्ञान की धारणा मन मे नहीं होती थी जिससे प्रैक्टिकल जीवन मे ज्ञान का एप्लीकेशन नहीं कर पाते थे नवीन शिक्षा पद्धति पर ज्ञान की धारणा कर प्रैक्टिकल जीवन मे एप्लीकेशन हेतु फोकस किया जावेगा साथ ही नवीन शिक्षा पद्धति में अब साल में दो मर्तबा परीक्षा होने से पर दोनों एग्जाम्स के मार्क्स फाइनल में जुड़कर निकलने से ओवरऑल पूरे वर्ष बच्चों को जमकर पढ़ाई करनी पड़ेगी जो उन्हें ज्ञान को धारण कर प्रैक्टिकल लाइफ में अप्लाई किए जाने हेतु प्रेरित करेंगी साथ ही इंटर्नशिप पद्धति भी छठी क्लास से ही आरंभ हो जाएगी जिसके तहत पढ़ाई के साथ-साथ अगर कोई किसी तरह के हुनर को सीखना चाहता है तो संबंधित हुनर प्रदान करने वाले स्थान पर इंटर्नशिप कर सकता है वह भी पढ़ाई के साथ-साथ ही कर सकता है जैसे अगर कोई बच्चा फोटोग्राफी में दिलचस्पी रखता है तो छठवीं क्लास से ही पढ़ाई करते-करते ही फोटोग्राफी में इंटर्नशिप कर सकता है इससे अगर भविस्य में किसी कारणवश कोई बच्चा कम पढ़ाई करके ड्रॉप भी लेता है तो उसके पास जीवन यापन करने हेतु रोजगारोन्मुखी हुनर उसके हांथ में ही होगा

4️⃣ बच्चों के पीठ पर बोझ कम करने के क्या उपाय किये जा रहे हैं – जी पहला तो फाउंडेशन के दौरान प्रिप्राइमरी व क्लास वन एंड टू को खेल खेल में सीखने योग्य बनाया जा रहा है,इसके अलावा, जरूर पहले की तुलना में बोझ तो कम हो रहे ही हैं, साथ ही डीजिटलाइजेसन से बहोत हद तक फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है इसके जिन विद्यार्थियों के पास उपकरण नहीं हैं, या आर्थिक रूप से कमजोर हैं ऐसा विद्यार्थियों के डिजिटल युग से जुड़ने से पढ़ाई को जोड़ने के लिए केंद्र व राज्य सरकार मिलकर अगर बच्चा हायर एजुकेशन जैसे इंजीनियरिंग कर रहा है तो उसे लैपटॉप दे दें

5️⃣ नई शिक्षा पद्धति कब तक धरातल स्तर पर लागू हो पाएगी – वैसे तो इस नेशनल हायर एजूकेशन बिल को अभी केंद्र सरकार द्वारा हरी झंडी मिली है, संसद में पारित हो प्रत्येक राज्यों द्वारा इम्प्लीमेंटेशन किया जावेगा तो 2021-22 से होने की संभावना नजर आ रही है पर पूर्व की शिक्षा पद्धति को पूर्णतया नवीन शिक्षा पद्धति में ढालने में इस लम्बी प्रक्रिया में समय लग सकता है क्योकि इम्प्लीमेंटेशन राज्यों को करना है जिसमे प्रत्येक राज्यों के अपने अपने कार्य करने की शैली होती है

6️⃣ ज्ञान को प्रैक्टिकल जीवन मे अप्लाई करने, रोजगारोन्मुखी बनने, व्यवहारिक ज्ञान के लिये क्या कोई नीति अपनाई गई है – जी निश्चित तौर पर यह बात सहीं है कि ज्ञान का एप्लिकेशन रियल लाइफ में नहीं हो पाना पूर्व की बहोत बड़ी कमी थी, जिसकी वजह नम्बरों की होड़, कॉम्पिटिशन, रटंत आदतें थी जिस पर नियंत्रण स्वरूप अब नवीन पद्धति में किसी छात्र को फाइनल मार्क्स देने का आधार उसके व्यवहार एक्स्ट्रा, करिकुलर एक्टिविटीज उसके प्रदर्शन उसकी मानसिक क्षमताओं का भी ध्यान रखा जाएगा साथ ही एक कॉमन एप्टिट्यूड टेस्ट की स्थापना की जा रही है, मान लीजिए कोई बच्चा 12 वीं में कम मार्क्स लाने की वजह से उसे अगर कॉलेज में एडमिशन लेने में दिक्कत आ रही है तो ऐसी स्थिति में कॉमन एप्टिट्यूड टेस्ट देकर वह अपने नंबर को जोड़ कर एडमिशन ले सकेगा, पूर्व की तोता रटंत पद्धति से नवीन शिक्षा पद्धति ज्ञान की धारणा कर प्रैक्टिकल में एप्लीकेशन किए जाने पर आधारित होगी जिसमें रिपोर्ट कार्ड 360 डिग्री एसेसमेंट के आधार पर बनेगा ट्यूशन और कोचिंग क्लासेज के जरिए रट्टा लगाने की पैटर्न का खात्मा होगा व स्कूल के पढ़ाई के दौरान ही ज्ञान को समझ कर धारण कर अपने जीवन में अप्लाई किए जाने हेतु ज्यादा फोकस किया जाएगा

7️⃣ पूर्व की 10+2 पद्धति व नवीन 5+3+3+4 पद्धति में क्या डिफरेंस है इससे क्या लाभ होगा – पूर्व की 10+2 पैटर्न हटाकर 5+3+3+4 पैटर्न लागू किया जा रहा है अर्थात पहले कक्षा दसवीं तक कॉमन जनरल शिक्षा सभी को प्रदान की जाती थी तथा 11वीं व 12वीं में स्पेसिफिक सब्जेक्ट में विस्तार से पढ़ाई की जाती थी अब नवीन शिक्षा पद्धति के अंतर्गत पहली सीढ़ी जिसे फाउंडेशन स्टेज कह सकते हैं, जिसके अंतर्गत प्री प्राइमरी 3 से 5 वर्ष तक तथा पहली व दूसरी 5 से 8 वर्ष तक रखी गई है वहीं दूसरी स्टेज प्रीपेरेटरी स्टेज तीसरी से पांचवी तक 9 से 11 साल के बच्चों के लिए, तीसरी स्टेज मिडिल या माध्यमिक शिक्षा छठवीं सातवीं आठवीं 12 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों के लिए उसके पश्चात 9वी से 12वीं तक 15 से 18 साल के बच्चों के लिए स्ट्रीम सिस्टम खत्म किए जा रहे हैं अर्थात पहले 11वीं 12वीं में स्पेसिफिक सब्जेक्ट्स या तो आर्ट्स या कॉमर्स या बायोलॉजी या मैथ्स लेकर पढ़ाई की जाती थी आर्ट्स का बच्चा कॉमर्स के सब्जेक्ट नहीं ले सकता था, परंतु नवीन शिक्षा पद्धति के तहत अब आर्ट्स का बच्चा कॉमर्स के कोई सब्जेक्ट या बायलॉजी या मैथ्स के कोई सब्जेक्ट लेकर पढ़ाई कर सकता है, इसे मल्टी एंट्री व मल्टी एग्जिट सिस्टम कहा जाता है अर्थात जब भी चाहे जो भी सब्जेक्ट ले सकते हैं और जब भी चाहे जो भी सब्जेक्ट ड्रॉप कर सकते हैं, जोकि आगे चलकर कॉलेजों में भी इस तरह से रहेगी

8️⃣ कॉमन एप्टीट्यूट टेस्ट क्या है इसका लाभ किस तरह से विद्यार्थियों को मिल सकता है – किसी छात्र को फाइनल मार्क्स देने का आधार उसके व्यवहार, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज, उसके प्रदर्शन उसकी मानसिक क्षमताओं का भी ध्यान रखा जाएगा एक कॉमन एप्टिट्यूड टेस्ट की स्थापना की जा रही है मान लीजिए कोई बच्चा 12 वीं में कम मार्क्स लाने की वजह से उस बच्चे को अगर किसी कॉलेज में एडमिशन लेने में दिक्कत आ रही है तो ऐसी स्थिति में कॉमन एप्टिट्यूड टेस्ट देकर वह अपने नंबर को जोड़ कर एडमिशन ले सकेगा मतलब उसे पुनः उस क्लास को एक वर्ष पढ़कर समय गंवाने की जरूरत नहीं

9️⃣ नवीन शिक्षा पद्धति के मुताबिक मल्टी एंट्री मल्टी एग्जिट की क्या पॉलिसी है – इसके तहत 9वीं से 12वीं तक अगर कोई बच्चा माना आर्ट्स लेकर पढ़ाई करने के साथ साथ बायोलॉजी सब्जेक्ट भी लेना चाहता है तो अब वह ऐसा कर सकता है ना केवल 9 वीं से बारहवीं बल्कि आगे उच्चस्तरीय शिक्षा के दौराज भी यह व्यवस्था कारगर रहेगी

🔟 छठवीं कक्षा से कोडिंग व इंटर्नशिप इससे क्या अभिप्राय है – इस बात के जवाब में प्राचार्य आईपीएस ड़ॉ संजय गुप्ता ने कहा कि इसके तहत कोई बच्चा माना 6 वीं की शिक्षा ग्रहण कर रहा है व उसे किसी तरह के कौशल पर दक्षता हांसिल करनी हो तो वह पढ़ाई के साथ साथ सम्बन्धित कौशल पर दक्षता हांसिल करने के लिए इंटर्नशिप कर सकता है

1️⃣1️⃣ बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये क्या है पॉलिसी – डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि 21 सदी के योग्य बनाने हेतु बच्चों को जीवन मे आई समस्यायों का सामना कर समाधान निकालने हेतु, व बड़े विचार प्रस्तुत कर बड़े लक्ष्य रखने हेतु प्रेरित किया जावेगा 34 साल पश्चात हो रहे शिक्षा नीति में यह बदलाओ निश्चित ही भारत को विश्व गुरु के शिखर की ओर पहुंचाएगा, व बच्चों के सामान्य ज्ञान, सामाजिक ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान, रचनात्मक ज्ञान, व्यवहारिक ज्ञान, कौशल विकास, मानसिक विकास हर एस्पेक्टस से बच्चों के सर्वांगीण विकास पर फोकस किया जाएगा यहां तक कि उपकरणों के उपयोग साधनों के उपयोग तथा इंटर्नशिप फैसिलिटी भी सम्मिलित की जा रही है

1️⃣2️⃣ एम फिल का होगा खात्मा तो नवीन शिक्षा पद्धति के अनुसार उच्चस्तरीय शिक्षा के लिये क्या रहेगी पॉलिसी – इस विषय पर प्राचार्य आईपीएस डॉक्टर संजय गुप्ता ने बतलाया कि पहले क्या था कि माना कोई बी ए के बाद एम ए करता है फिर एम फिल करता था फिर पी एच डी करता था अब बी ए के बाद एम ए फिर सीधे पी एच डी कर सकेगा बीच के एम फिल की व्यवस्था खत्म हो कि जा रही है, पहले क्या था कि जो बच्चा कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ देते थे तो ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं मिलती थी अब अगर 1 वर्ष पश्चात किसी कारणवश कोई अगर शिक्षा ड्राप करता है, तो उसे 1 वर्ष का सर्टिफिकेट प्रदान किया जाएगा अगर कोई 2 वर्ष पश्चात कॉलेज से ड्राप करता है तो उसे डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा वहीं अगर कोई 3 वर्ष पश्चात कॉलेज से ड्राप करता है तो उसे डिग्री प्रदान की जाएगी और अगर कोई पूर्ण 4 वर्ष पढ़ाई करता है तो उसे रिसर्च के साथ-साथ डिग्री प्राप्त होगी, वहीं यूनिवर्सिटी द्वारा कॉलेजों की एफीलिएशन पद्धति धीरे-धीरे समाप्त होगी इससे यूनिवर्सिटी अपने रिसर्च पर ज्यादा फोकस कर पाएगी अन्यथा अभी क्या हो रहा है कि यूनिवर्सिटी का पूरा समय एफिलिएटिड कॉलेज के एग्जाम लेने में ही समय बीत जाता है और रिसर्च का मुख्य कार्य दरकिनार हो जाता रहा है, साथ ही कॉलेजों में डिजिटल सर्टिफिकेट डिजिलॉकर की व्यवस्था होगी अगर आज कोई 1 वर्ष की पढ़ाई करता है व ड्राप करता है तो उसका सर्टिफिकेट डिजिटल लॉकर में एक समय अंतराल के लिए उपलब्ध रहेगा स्पेसिफिक समय के अंदर अगर वह व्यक्ति पुनः रिजॉइन करता है तो उसे पुनः फर्स्ट ईयर से पढ़ाई नहीं करनी पड़ेगी बल्कि डिजिलॉकर में उनका सर्टिफिकेट होने से उन्हें अगले क्लास में ऑटोमैटिकली शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति मिल जाएगी

1️⃣3️⃣ क्या अब स्कूल की पढ़ाई 15 वर्ष हो जाएगी – इस विषय पर डॉक्टर संजय गुप्ता प्राचार्य आईपीएस ने बतलाया कि जी हां फाउंडेशन में प्रिप्राइमरी हेतु एक से तीन वर्ष लगेगा फिर वन टू कक्षा की पढ़ाई अर्थात फाउंडेशन में कुल 5 वर्ष लगेंगे, तदोपरांत तीसरी से बारहवीं तक कुल 15 वर्ष अब नई शिक्षा पद्धति के अनुसार लगने हैं

1️⃣4️⃣ फाउंडेशन एजुकेशन में 3 वर्ष आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा पढ़ाया जाएगा पर उनकी योग्यताएं एक शिक्षक के तौर पर कम होती हैं उसकी भरपाई किस तरह से होगी – इसके लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 6 महीने सर्टिफिकेट या 1 साल के डिप्लोमा करवाये जाने का जिक्र नवीन एजुकेशन पॉलिसी में नजर आता है जिसको लेकर परिजनों में पहले से ही असंतोष का माहौल बनता नजर आ रहा है व यह क्रिटिसाइज का विषय बना हुआ है

इस तरह मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को बदलकर नवीन शिक्षा पद्धति लागू किये जाने की जद्दोजहद जारी है, स्कूलों व कॉलेजों में संस्कृत को बढ़ावा दिया जावेगा, प्राइवेट संस्थान निश्चित तयसुदा फीस से ज्यादा फीस नहीं ले सकेंगे, वहीं मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय के रूप में बनाया जा रहा है, शिक्षा व्यवस्था में यह बदलाओ धीरे धीरे लाये जाएंगे, नई शिक्षा नीति सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में अंतर नहीं करेगी, अंग्रेजी पढ़े हुवे क्लर्क बनने से बेहतर है मातृभाषा पढ़े हुवे स्वरोजगारी बनना, अब अंग्रेजी को एक सब्जेक्ट के तौर पर पढा जाएगा, अब विदेशी यूनिवर्सिटी भारत में कॉलेज खोल निवेश कर सकते हैं, तीन भाषाओं में एक क्षेत्रीय या स्थानीय एक मातृभाषा एक अंग्रेजी ले सकते एक अंग्रेजी एक जर्मन इस तरह से दो विदेशी भाषा नहीं ले सकते, कॉमन एंट्रेंस एग्जाम लिए जाने की व्यवस्था लाई जा रही इस तरह से एनसीईआरटी सिलेबस में बड़ा बदलाव करने जा रही है, अब कालेज में संगीत कला साहित्य पढ़ाया जाएगा, दसवीं बोर्ड खत्म की जा रही है, नए भारत के निर्माण में मिल का पत्थर साबित होगी नई शिक्षा नीति