कोरबा। कभी कोरबा और छत्तीसगढ़ का गौरव रही भारत एल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) अब महज 49 प्रतिशत शेयरधारक होकर ऐसी मनमानियां कर रही है, जिस पर अंकुश लगाना तो दूर, उल्टे सरकारी महकमा ही कंपनी की कारगुजारियों को अंजाम तक पहुंचाने में मददगार की भूमिका निभा रहे हैं। ताजा मामला सीएसईबी के अधिपत्य की कोहडिया में स्थित शासकीय वन भूमि खसरा नंबर 486/1, 491/1 पर बालको द्वारा अवैध कब्जा कर और फिर बिना अनुमति बेचिंग प्लांट, लेबर हटमेंट एवम रेल्वे लाईन निर्माण किए जाने से सबंधित है। नगर निगम कोरबा और ग्राम निवेश विभाग की सरपरस्ती में वेदांता समूह की कंपनी बालको ने पहले तो सीएसईबी की जमीन खसरा नंबर 486/1, 491/1 पर कब्जा किया, फिर बिना अनुमति, बिल्डिंग प्लान व ले-आउट स्वीकृत कराए सरकारी वन भूमि पर बेचिंग प्लांट और लेबर हटमेंट का स्ट्रक्चर खड़ा कर लिया। इस तरह तय मापदंडों, को दरकिनार कर किए जा रहे निर्माण से न केवल नियम-कायदे की धज्जियां उड़ाई जा रही है. बालको प्रबंधन द्वारा श्रमिकों की जिंदगी को भी खतरे में डालने का काम कर रहा है। दुर्भाग्य तो यह है कि ऐसे अवैध कब्जे और निर्माण को फौरन रोकने की कार्यवाही की बजाय नगर निगम और ग्राम निवेश जैसे शक्तिशाली विभाग बालको को शह देने में लगे हुए हैं।
शासन-प्रशासन और कायदे कानून को ठेंगा दिखाना तो कोई वेदांता समूह की कंपनी बालको से सीखे जिसके गोरख कारोबार की लिस्ट निकालें तो पन्ने पलटते-पनटते कब दिन महीने और साल गुजर जाएंगे, पता ही नहीं चलेगा। कभी वन भूमि पर कब्जा कर राखड़ का बेतरतीब परिवहन और खुले में डंपिंग, बड़े झाड़ के जंगलों का सफाया से लेकर नदी नालों को नुकसान पहुंचाने जैसी अनगिनत मामलों की फाइल है, जो सरकारी दफ्तरों की आलमारियों में दशकों से धूल खाती पड़ी होंगी। ऐसा कोई एक भी विभाग न होगा, जहां बालको के खिलाफ कोई न कोई शिकायत न मिले। पर शासन-प्रशासन और पुलिस डिपार्टमेंट ने तो जैसे आंखों पर पट्टी बांध रखी हो. कि कोई सुनने- देखने को कभी तैयार न दिखा। अब बालको प्रबंधन ने खुलेआम सीएसईबी के अधिपत्य की जमीन पर कब्जा कर लिया और उस अवैध कब्जे पर अवैध निर्माण भी किया जा रहा है, लेकिन जिम्मेदार विभाग निगरानी या कार्यवाही करने की बजाय हाथ पर हाथ धरे मूक दर्शक बना बैठा है। इससे तो यही प्रतीत होता है कि बुलडोजर लेकर चलने वाले नगर निगम का अमला और ले-आउट की अनुमति देने वाले ग्राम निवेश विभाग के अधिकारियों की सरपरस्ती में ही बालको की यह मनमानी न केवल फल-फूल रही है, बल्कि चरम पर ही पहुंच गई है। जगजाहिर हो चुका है कि नगर निगम कोरबा और ग्राम निवेश की सरपरस्ती में बालको सीएसईबी की आधिपत्य की भूमि पर बालको ने कब्जा कर अवैध निर्माण कर लिया। इतना ही नहीं, बिना अनुमति व बिल्डिंग प्लान ले-आउट स्वीकृत कराकर बेचिंग प्लांट और लेबर हटमेंट निर्माण किया। पर इस तरह से सैकड़ों श्रमिकों के जीवन को खतरे में डालकर भी बालको धड़ल्ले से शासकीय भूमि पर कब्जा कर रहा है. पर कोई इस भर्राशाही को रोकना तो दूर झांकने तक को तैयार नहीं। इससे तो यही लगता है कि या तो सबकुछ सेट है या फिर शायद विभागों को किसी अनहोनी का इंतजार है।
बालको की दबंगई के आगे सीएसईबी प्रबंधन नतमस्तक
बालको प्रबंधन द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य को लेकर अक्सर विवाद की स्थिति निर्मित होती रही है। हालांकि बालको प्रबंधन द्वारा सफाई दी जाती है कि उनके द्वारा किए जा रहे सभी कार्य वैध हैं। अब थोड़ा वक्त पीछे जाएं, तो याद आएगा कि वर्ष 2023 में भी बालको प्रबंधन द्वारा बालको चेकपोस्ट के समीप नई रेल लाइन का निर्माण किया जा रहा था। पूर्व में इस रेल लाईन के निर्माण कार्य पर अपने स्वामित्व की भूमि बताकर आपत्ति जताते हुए सीएसईबी द्वारा निर्माण स्थल पर जाकर काम रुकवा दिया गया था। पूर्व में जुलाई 2023 में ही में ही केटीपीएस के एसई सिविल पीतांबर नेताम द्वारा बालको प्रबंधन के द्वारा किए जा रहे रेलवे लाइन के निर्माण कार्य को रुकवा दिया गया था। पर सीएसईबी की स्वामित्व की उसी भूमि पर उसी रेल लाइन का काम बिना किसी रोकटोक चलता रहा, जो जाहिर करता है कि बालको की दबंगई के आगे सीएसईबी प्रबंधन नतमस्तक है और अब की बार भी ऐसा ही होता दिख रहा है।
वर्ष 2011 तक 1200 मेगावाट संयंत्र में काम रोकने बालको को दिए थे 11 नोटिस
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 1200 मेगावाट संयंत्र पर काम रोकने के लिए बाल्को को 11 नोटिस दिए गए थे, जिसमें अंतिम नोटिस 3 अक्टूबर, 2011 को दिया गया था। पर कंपनी द्वारा एक भी नोटिस का जवाब नहीं दिया। बालको प्रबंधन किसी नोटिस का प्रतिउत्तर देने में कितनी कोताही बरतता है, यह तो वनविभाग के द्वारा अब तक लगभग सवा अरब रुपये से अधिकं हो चुके राशि को चुकाने के संबंध में लगातार दिए गए नोटिस से भी स्पष्ट हो जाता है। लगभग एक दर्जन नोटिस पर एकाध टका सा उत्तर दिया गया और बदले में वनविभाग के द्वारा किसी तरह की अग्र कार्यवाही न करना वस्तुस्थिति को स्पष्ट कर देता है कि गड़बड़ी कहां पर है। वनविभाग चाहे तो आज भी न्यायालय में लगभग सवा अरब रुपयों की वसूली के लिए प्रकरण दर्ज करा सकता है, पर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।