जोधपुर:- राजस्थान में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो रिश्वतखोरी पर जमकर काम कर रहा है. इस बीच एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में ही गड़बड़झाला सामने आया है. दरअसल, जोधपुर में एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पर एक थानाधिकारी को फर्जी तरीके से ट्रैप करने का आरोप लगा है. दिलचस्‍प है कि एसीबी की जांच में ही थानेदार को क्लीन चिट दे दी गई. दूसरी तरफ, थानेदार ने गृह विभाग में शिकायत की तो जांच अधिकारी को अब चार्जशीट दी गई है. 21 जून 2019 को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नरेंद्र चौधरी ने (जो तत्कालीन एसीबी जोधपुर पुलिस चौकी में तैनात थे) रातानाड़ा थाने में ट्रैप की कार्रवाई को अंजाम दिया था.

रातानाड़ा थाना अधिकारी भूपेंद्र सिंह को रिश्वत लेते गिरफ्तार किया गया था. उस समय रातानाड़ा थाना अधिकारी भूपेंद्र सिंह को 6 दिन की रिमांड पर रखने के बाद उनको न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. एसीबी के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नरेंद्र चौधरी ने रातानाड़ा थाने में एसएचओ कार्यलय में ही एक लाख रुपए बरामद किए थे, लेकिन कार्रवाई के बाद दो जांच अधिकारियों ने मामले को फर्जी पाए जाने पर एफआर लगा दी.

फर्जीवाड़ा सामने आने पर एसीबी से हटाया
नरेंद्र चौधरी के फर्जी ट्रैप का खुलासा होने के बाद एसीबी ने राज्य सरकार को नरेंद्र चौधरी को एसीबी से हटाने की अनुशंसा कर दी, जिसके बाद राज्य सरकार ने नरेंद्र चौधरी को एसीबी से हटा दिया. इस बीच अब गृह विभाग ने फर्जी ट्रैप की कार्रवाई को लेकर तत्कालीन एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नरेंद्र चौधरी को चार्जशीट दी है.

नरेंद्र चौधरी पर गंभीर आरोप
नरेंद्र चौधरी ने थानाधिकारी भूपेंद्र सिंह के खिलाफ रिश्वत की शिकायत पर 19 मई 2019 को सत्यापन किया. सत्यापन वार्ता सुने बिना ही थानाधिकारी भूपेंद्र सिंह पर ट्रैप की कार्रवाई की गई. जबकि सत्यापन वार्ता में रिश्वत लेने की कोई सहमति के साक्ष्य नहीं मिले. एसीबी को शिकायतकर्ता ने बताया कि उसके खिलाफ दर्ज मामले में जांच अधिकारी और निरीक्षक उसके फ्लैट पर आए वहां 4 लाख रुपए लिए और पुलिसकर्मी ने बिल्डिंग के नीचे खड़े थानाधिकारी को वह पैसे दिए. शिकायतकर्ता ने रुपए बैंक से लाना बताया और शिकायत के साथ बैंक पासबुक भी देना बताया. छानबीन में सामने आया कि फाइल में पासबुक थी ही नहीं. साथ ही बैंक खाते से रुपए भी नहीं निकाले गए.

जांच में पाया गया कि खाते में इतने रुपए थे ही नहीं जितना थाना अधिकारी को देना बताया गया. पुलिस कंट्रोल रूम के वीडियो कैमरे की रिकॉर्डिंग और मोबाइल लोकेशन से थानाधिकारी की मौके पर होने की पुष्टि भी नहीं हुई. लिहाजा इस तरह फर्जी ट्रैप की कार्रवाई का खुलासा हुआ.