• श्री गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश जी के गुणों को जीवन मे आत्मसात कर बच्चों को अपने जीवन मे आये विघ्नों का समाधान निकाल विघ्नविनाशक बनने की दी गई प्रेरणा – (डॉ. संजय गुप्ता आई.पी.एस.)
  • अष्ठ शक्तियों को जीवन मे धारण कर विघ्न विनाशक बन जीवन में आने वाली प्रत्येक विघ्नों का सामना कर समाधान निकालने की दी गई प्रेरणा – (डॉ. संजय गुप्ता आई.पी.एस.)
  • बच्चों ने लॉक डाउन के दौरान घर पर गणेश की मिठ्ठी की प्रतिमा बनाकर सेलिब्रेट किया गणेश चतुर्थी

कोरबा:- गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर इंडस पब्लिक स्कूल दीपिका द्वारा ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से मोरल क्लासेज का आयोजन किया गया। उक्त कार्यक्रम का मख्य उद्देश्य श्री गणेश के गुणों से बच्चों को रूबरू करवाकर उनके गुणों को जीवन मे आत्मसात करने हेतु प्रेरणा प्रदान करना था।

आई.पी.एस. के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता से हुई परिचर्चा में उन्होंने बतलाया कि आईपीएस दीपका द्वारा ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से मोरल क्लास का आयोजन किया गया था। जिसमें बच्चों ने गणेश चतुर्थी के अवसर पर श्री गणेश जी की प्रतिमा से आध्यात्मिक रहस्य को समझा तथा जाना कि सिम्बोल के तौर पर प्रस्तुत किये गए श्री गणेश की प्रतिमा के प्रत्येक अंग का आध्यात्मिक रहस्य क्या है, ज्ञात हो कि भारत मे मनाए जाने वाले जितने भी त्यौहार हैं, उसके पीछे आध्यात्मिक मेसेज निहित होता है, जिस आध्यात्मिक मेसेज को जीवन मे आत्मसात करके, धारण कर जीवन सफल किया जा सकता है। श्री गणेश चतुर्थी के अवसर पर आज के मोरल क्लास में बच्चों ने जाना कि गणेश जी की प्रतिमा में दिखलाया गया भव्य मस्तक जो कि बड़े आकार का दिखलाया जाता जो सिम्बोल है विशाल दिव्य बुद्धि का, जिसके लिये जीवन मे पवित्रता जरूरी है, क्योंकि जिसके जीवन मे पवित्रता होती है, उसकी बुद्धि भी स्वक्ष होती है व स्वक्ष बुद्धि में ज्ञान सहज ही ठहर जाता है तो बच्चों को बुरा ना देखना चाहिए, नाबुरा सुनना चाहिए नाबुरा सोचना चाहिए ना बुरा बोलना चाहिए क्योंकि जैसा इनपुट वैसा आउटपुट हम जो देखते सुनते सोचते हैं वैसा हम बनते जाते हैं, उसके बाद बच्चों ने जाना कि गणेश जी की प्रतिमा में बड़े बड़े सुप के आकार के कान दिखलाए जाते हैं, सुप का गुण होता है आप लोगों ने गौर फरमाया होगा कि जब सुप में चावल को फटका जाता है तो चावल के कंकड़ उससे अलग हो जाते हैं, इस प्रकार बड़े कान सुप के आकार के अर्थात फ़िल्टर करके अच्छे-अच्छे पॉजिटिव बातें, ज्ञान की बातें सुनने के तरफ इशारा करती है व कम बोलना तथा ज्यादा सुनना be a good Listener in life इस बात की प्रतीक हैं, आज के दौर में नकारात्मक बातें चारों ओर फैली रहती है तो हमें केवल पॉजिटिव बातें ही श्रवण करनी चाहिए क्योंकि जैसा हम सुनते हैं वैसा हम बनते जाते हैं, उसके पश्चात गणेश जी की प्रतिमा में गणेश जी की छोटी छोटी आंखें दिखलाई जाती है जो दूर दृष्टि व एकाग्रता (Concentration) का प्रतीक है, आमतौर पर जीवन में देखा जाता है कि मनुष्य का मन प्रायः स्थिर नहीं रहता है, एकाग्रता की कमी सदा बनी ही है, वह एक स्थान पर बैठा एक काम करता रहता है, परंतु उसका मन कहीं और भटकता रहता है, जिससे एकाग्रता नहीं होती किसी भी काम में तो एकाग्रता अर्थात जब मन व बुद्धि एक साथ एक टिक होकर किसी कार्य को करते हैं तो उसे एकाग्रता कहते हैं, तो गणेश जी के छोटी छोटी आंखें दूर दृष्टि व एकाग्रता का प्रतीक है हमें अपने मन व बुद्धि को भटकने से रोककर उसे पढ़ाई में एकाग्र करने की कला सीखनी चाहिए, उसके पश्चात बच्चों ने जाना कि गणेश जी के पेट-उदर बड़े आकार के दिखाए जाते हैं, जिस वजह से गणेश जी को लंबोदर के नाम से भी संबोधित किया जाता है, इसका आध्यात्मिक रहस्य यह की बड़ा पेट माना समाने की शक्ति व विशाल हृदय का प्रतीक स्वरूप गणेश जी के विशाल उदर दिखाया जाता है किसी भी बातों को समाने की शक्ति हममे होनी चाहिए अर्थात अक्सर हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि बहुत से लोगों की आदत होती है कि जब कोई उन पर विश्वास करके अपने जीवन के कुछ बातें उनसे शेयर करता है, तब बातों को पचाने की क्षमता नहीं होने से, अर्थात समाने की शक्ति नहीं होने से सुनने वाला उन गुप्त बातों को किसी थर्ड पर्सन से शेयर कर देता है, जिससे कई मर्तबा विवादास्पद स्थिति निर्मित हो जाती है, वह एक बात सुनते हैं दूसरी और उसे जाकर बतला देते हैं उसी प्रकार विद्यार्थी जीवन में भी प्रायः कई लोगों को ज्ञान को अपने बुद्धि में समाने की क्षमता कम होती है कोई ज्ञान को अच्छे से अपने बुद्धि में समा लेता है तो वहीं कोई ज्ञान को कम समा पाता है, इस तरह लोगों के अलग-अलग मार्क्स भी आते हैं तो हमें अपने अंदर की समाने की शक्ति को जागृत करना चाहिए जो कि निरंतर रीडिंग हैबिट की प्रैक्टिस से ही संभव है, आगे बच्चों ने जाना गणेश जी की प्रतिमा में मोदक हाथ में दिखलाया जाता है, जिसका आध्यात्मिक रहस्य परिश्रम से मिले मीठे फल से मिली खुशी हर्ष उल्लास का प्रतीक है, उसके पश्चात बच्चों ने जाना गणेश जी को एकदंत कहा जाता है क्योंकि वैसे तो हाथी का जो दांत होता है वह बड़ा ही अमूल्य होता है तो अपने जीवन को गुणों की धारणा कर हमें अपने आपको अमूल्य बनाना है अपने गुणों अपने काबिलियत के बलबूते अपने आप को महान यूनिक बनाना है मास्टर पीस बनाना है जिसके लिए दूसरों को कॉपी करना छोड़कर अपने ओरिजिनल गुण संस्कार को प्रत्यक्ष करना है, अपने मन की बुराइयों को मिटाना अच्छाइयों को धारण करना होता है, तत्पश्चात बच्चों ने जाना श्री गणेश जी के सवारी मूषक की सवारी कहा जाता है, अर्थात चूहे की सवारी दिखलाई जाती है तो चूहा प्रतीक है हमारी इच्छाओं का व लोभ मोह अहंकार का, चूहे का गुण होता है कि जब चूहा काटता है तो पहले फूंक मारता है एनेस्थेटिक इफेक्ट देता है, उसके पश्चात उस स्थान पर काटता है जिससे जिनको चूहा काटता है तो उनको पता भी नहीं चलता क्योंकि एनेस्थेटिक इफेक्ट पहले ही फूंक मारकर चुहा दे चुका होता है, दूसरा चूहा कहीं भी बिल में घुस जाता है नजर ही नहीं आता तो इसी तरह हमारे जीवन में भी लोभ, इक्षाएँ, अहंकार, ईष्या, द्वेष, मोह, क्रोध इत्यादि नेगेटिविटी, नेगेटिव इमोशंस विकारों के रूप में चूहे की तरह जीवन मे कब कहां से प्रवेश करती है व हमारे जीवन को तहस-नहस कर जाती है, और हमें पता भी नहीं चलता, जब हमारा मन उन नेगेटिविटी के वशीभूत होकर कर्म करता है, तो उसे पता भी नहीं चलता कि वह गलत कार्य कर रहा है, उदाहरण के तौर पर जिस तरह अगर कोई व्यक्ति क्रोध करता है, तो क्रोध के आवेश में आकर उसे एहसास भी नहीं होता कि वह क्या नेगेटिव कर्म कर रहा है, मन का क्रोध शांत हो जाने के पश्चात जब वह अपने किए हुए कर्म पर गौर फरमाता है तो उसे यकीन ही नहीं होता कि यह कर्म उसके द्वारा ही अंजाम दिए गए हैं तो जिस तरह गणेश को मुसक की सवारी दिखलाते हैं तो हमें भी अपने इमोसंस पर नियंत्रण करने आना चाहिए व अपने नेगेटिव हैबिट का गुलाम नहीं बनना चाहिए, अपनी इक्षाओं पर काबू पाने आना चाहिए व किसी चीज के लिये जिद नहीं करना चाहिए बल्कि आपने कर्म को इतना श्रेष्ठ बनाना चाहिए कि वह चीज स्वयं ही अपने पास आजाये, विद्यार्थी जीवन में जो इक्षाएँ, किसी वस्तु का लोभ, टीवी मोबइल से मोह, मैं-मेरा पन का अहंकार इत्यादि नेगेटिविटी पर जीत पाकर उन बुराइयों पर जीत पाकर उनकी सवारी करनी चाहिए, अर्थात अपने नेगेटिव इमोशंस पर हमारा संपूर्ण नियंत्रण रहना चाहिए क्योंकि हमारे नेगेटिव इमोशंस हमसे नेगेटिव कर्म करवाते हैं साथ ही बच्चों ने जाना कि श्री गणेश जी के हाथ में जो कुल्हाड़ी दिखलाई जाती है उसका आध्यात्मिक रहस्य ज्ञान की कुल्हाड़ी से है जिससे कि मोह ममता के बंधन काटना, बुरे संस्कार को मिटाने से हैं, अक्सर इस नेगेटिविटी के बीच रहते रहते लोगों के बुरे संस्कार भी हम में प्रवाहित होने लगते हैं तो उन बुरे संस्कारों को अपने से अलग करने के लिये हमें अपने द्वारा अर्जित ज्ञान व विवेक समझ से काम लेना चाहिए, आगे बच्चों ने जाना कि श्री गणेश जी की प्रतिमा में छोटा मूख दिखलाया जाता है जो कि निर्भयता व सामर्थ्यता का प्रतीक है, वहीं श्री गणेश जी की प्रतिमा में हांथों में कमल पुष्प दिखलाया जाता है तो यह कमल पुष्प प्रतीक है तो कमल पुष्प का गुण होता है कि वह खिलता तो किचड़ में है पर किचड़ व गंदगी का प्रभाव अपने पर नहीं पड़ने देता, हमें भी अपने जीवन मे कैसे भी माहौल में रहना पड़े उसके बावजूद उस नेगेटिव माहौल का प्रभाव अपने मन पर नहीं पड़ने देना है, वहीं श्री गणेश जी का एक पैर दूसरे पर चढ़ा हुवा व दूसरा पैर जमीन पर उसमे भी केवल अंगूठा जमीन को टच करता रहता है, इसका तात्पर्य डिसीजन लेने की क्षमता से है कि हमे कोई भी निर्णय सोच समझकर डाउन टू अर्थ लेना चाहिए, उसके पश्चात बच्चों ने जाना कि गणेश जी का सूंड जो कि फ्लैक्सिबल होता है बिल्कुल उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन में फ्लैक्सिबिलिटी लाना चाहिए हमें कोई भी कार्य करने के लिए सदैव एवर रेडी रहना चाहिए अपने आपको फ्लैक्सिबल बनाना चाहिए जो व्यक्ति झुकता है मुड़ता है दुनिया उसकी कद्र करती है, और जिस व्यक्ति में अहंकार होता है वह किसी के सामने नहीं झुकता तो दुनिया उनकी कद्र भी नहीं करती क्योंकि अहंकार से अहंकार टकराने से कद्र दरकिनार हो जाती है, जिस तरह एक फलदार वृक्ष जितना भी फलदार हो जाए पर वह उतना ही झुकता जाता है, और लोगों को फल प्रदान कर जीवन में मिठास देता है, कोई उस पर पत्थर मारे तो भी दर्द सहता है व फल देता है, बिल्कुल उसी प्रकार हमें भी अपने आप को एक फलदार वृक्ष की भांति सदैव झुक कर लोगों को देने की कला सीखनी चाहिए क्योंकि मांगने के संस्कार नेगेटिविटी को दर्शाते हैं वहीं देने के संस्कार पॉजिटिविटी को दर्षाते हैं, श्री गणेश की प्रतिमा में हांथों में मोदक बूंदी के लड्डू दिखलाए जाते हैं जो कि संबंधों में मिठास व परिश्रम से प्राप्त मीठे फल की निशानी है तो हमें भी जीवन में कोई शॉर्टकट नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि अपने जीवन के हर कार्य को पूरे परिश्रम के साथ ईमानदारी से करना चाहिए, जिससे ही पॉजिटिव फल की भी प्राप्ति होगी आजकल लोग जीवन मे असंतोष की वजह से परिश्रम करने से पीछे भागते हैं जो कि उनके जीवन को अंधकार में धकेलता रहता है, श्री गणेश की प्रतिमा के दोनों तरफ रिद्धि व सिद्धि को दरसाया जाता है, जिसका आध्यात्मिक रहस्य यह कि रिद्धि माना अष्ठ शक्तियों को अपने जीवन में धारण करने के पश्चात किये गए कर्म में सफलता निश्चित ही प्राप्त होती है, गुणों की धारणा करने के पश्चात हम जब किसी भी कार्य को करते हैं तो उसमें सफलता मिलती है, जिसे ही सिद्धि के तौर पर प्रतीक स्वरूप बतलाया गया है, और अंत मे बच्चों ने जाना कि जिस तरह एक पत्थर जब तक छेनी हथौड़ी की दर्द सह- सहकर मूर्ति का रूप नहीं ले लेता तब तक वह मंदिरों में पूज्यनीय नहीं बनता उसी तरह हमे भी अपने जीवन की हर कठिनाइयों को पार करना चाहिए कठिनाइयों से घबराकर रुकना या मुंह मोड़कर पीछे नहीं हटना चाहिए, बल्कि कठिनाइयों का सामना करना चाहिए उसका सॉल्यूशन निकालना चाहिए इससे मीले अनुभव हमे शक्ति प्रदान करते हैं व दोबारा जब कभी वैसी प्रॉब्लम जीवन मे आते हैं तो हमें उसका सॉल्यूशन पहले से ही विदित होने से हम उस प्रॉब्लम को प्रॉब्लम ना समझकर आसानी से परिस्थिति को क्रॉस कर जाएंगे पार कर जाएंगे, आगे डॉक्टर संजय गुप्ता प्राचार्य आईपीएस नें बतलाया कि बच्चों ने घरों में मिठ्ठी के गणपति बनाकर बड़े ही उमंग व उत्साह के साथ गणेश चतुर्थी सेलिब्रेट करते हुवे अपने जीवज में उनके गुणों को आत्मसात करने की प्रेरणा ली।