- गरबा नृत्य सिखलाता है जीवन को बैलेंस करते हुवे, प्रत्येक से अपने ओरिजिनल संस्कारों के अनुसार व्यवहार करने की कला डॉ. संजय गुप्ता आईपीएस दीपका
नवरात्रि भारत मे एक अहम त्याहारों में से एक है जिस समय सम्पूर्ण भारत मे भक्ति व आध्यात्मिकता की लहर फैली होती है, सभी देवियों के गुणगान में समय व्यतीत कर एक अलौकिक वातावरण, अलौककक वायुमण्डल में जी रहे होते है। उसी बीच नवरात्रि में गरबा डांस का आयोजन भी विभिन्न स्थानों में देखने को मिल जा रहा वहीं ऑनलाइन वर्चुवल गरबा नृत्य का आयोजन किये जाने का भी क्रेज बना हुआ है लोग सोशल मीडिया पर अपने-अपने घरों से गरबा नृत्य की फोटोग्राफ्स व वीडियो सांझा कर रहे हैं
आई.पी.एस. दीपका में भी नवरात्रि के मद्देनजर गरबा नृत्य का आयोजन किया गया इस दौरान आई.पी.एस. के प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता से हुवे परिचर्चा में उन्होंने बतलाया जैसा कि आप सभी भलीभांति वाकिफ है नवरात्रि चल रही है। इस दौरान सम्पूर्ण भारतवासी देवियों की स्तुति वंदना में, भक्ति में लींन रहते हैं, एक आध्यात्मिक माहौल बना रहता है, जिस दौरान गरबा नृत्य का चलन भी खुमारी पर ना केवल महिलाओं में बल्कि पुरुषों में बच्चों में बुजुर्गों में सबमें उमंग उत्साह के साथ अपनी खुशी को रेफकेक्ट करने के लिये गरबा नृत्य का आधार लिया जा रहा है। लॉक डाउन के दौरान लोगों के चेहरे पर उदासी सी छा गई थी, जीवन निरश सा बनता जा रहा था, भारत त्योहारों का देश है, जहां एक के बाद एक त्योहार मनाए जाते हैं, विश्व स्तर पर मनाए जाने वाले त्योहारों व भारतीय त्योहारों में अंतर यह है कि भारत के त्योहार उमंग व उत्साह से मनाए जाते हैं। पर विश्व स्तर पर मनाए जाने वाले स्पेशल डे उस चयज की समाज मे विलुप्ति को रोककर उसे पुनः अस्तित्व में लाने के मकसद से सेलिब्रेट किये जा सकते हैं, भारत मे मनाए जाने वाले प्रत्येक त्योहारों का अपना अलग ही आध्यात्मिक रहस्य है उदाहरण के तौर पर अगर बात करें गरबा की तो गरबा का आध्यत्मिक रहस्य संस्कारों की डांस से है। अर्थात जब शिव इस धरा पर विश्व परिवर्तन करने आते हैं। तो गीता ज्ञान के माध्यम से सबसे पहले ब्रह्मा के संस्कारों में परिवर्तन करके गीता ज्ञान रूपी व योगअग्नि से विश्व परिवर्तन की नींव रखते हैं। जिस संस्कारों को धीरे धीरे अन्य कलयुगी आत्माओं में प्रवाहित होने से उनके कलयुगी तमोगुणी संस्कार परिवर्तित होते जाते हैं व दैवीय संस्कार इमर्ज होते जाते हैं। अर्थात अपने अंदर के आशुरी वृत्तियों को मर्ज कर दैविय गुणों को प्रत्यक्ष करने से व्यक्तित्व में परिवर्तन होता है। जिस तरह गरबा के दौरान दो डंडे एक व्यक्ति के हाँथ में दो डंडे दूसरे व्यक्ति के हाँथ में व इस तरह से राइट लेफ्ट करते हुवे बैलेंस बनाकर नृत्य किया जाता है। जो प्रतीक है इस बात का की जीवन रूपी नाटक मंच पर हमें अपने संस्कारों के अनुसार ही व्यवहार करने चाहिए। अक्सर जब कोई हमसे अच्छे से व्यवहार करता है तो हम भी उनसे अच्छे से व्यवहार करते हैं। वहीं जब कोई हमे कटु वचन बोलता है। या बुरा व्यवहार करता है तो हम उनके संस्कारों से प्रभावित होकर अफेक्टेड होकर उनके जैसा हम भी व्यवहार करने लग जाते हैं। जो कि बिल्कुल गलत है हमे अपने संस्कारों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए जिस तरह डांडिया या गरबा में जब उधर से कोई एक डंडा घूमाता है तो हम अपने बॉडी को बैलेंस बनाते हुवे उस डंडे से डंडा टकराते हुवे एक सुंदर से नृत्य को परफॉर्म करते हैं जिसे गरबा नृत्य कहते हैं। ठीक उसी तरह जब उधर से सामने से कोई किसी तरह के वाणी बोलता है या व्यवहार करता है। तब हमें अपने संस्कारों के अनुसार उनके बोल का उनके व्यवहार का जवाब देना चाहिए। अगर उधर से कोई कटु वचन बोल रहा है या नेगेटिव बिहेव कर रहा है। तो हमें वैसा नहीं करना चाहिए बल्कि हमे अपने संस्कारों के अनुसार मीठे वचन बोलने चाहिए, मीठा पॉजिटिव व्यवहार करना चाहिए और जब हम यह कला सिख जाते हैं तो परिस्थितियों का प्रभाव व दूसरे के व्यवहार, वाणी का प्रभाव हम पर नहीं पड़ता बल्कि जीवन के जर परिस्थिति पर हमारा व्यवहार पॉजिटिव बना रहता है। हम हर कंडीशन का हर सिचुवेसन का सामना करने की काबिलियत रखते हैं। जिससे हमारा मन अब दूसरे के व्यवहार से प्रभावित होकर व्यवहार नहीं करता बल्कि स्वयं के संस्कार के अनुसार व्यवहार करने लग जाता है।
आगे डॉक्टर गुप्ता ने सोसाइटी के प्रत्येक को संबोधित करते हुवे सबको नवरात्रि की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं प्रेसित किये व बतलाये की जब से लॉकडाउन लगा है, बच्चों बिन स्कूल बिल्कुल सुना सुना सा लग रहा है, इस नवरात्रि देवियों से आवाहन करते हैं कि सबमें दैवीय गुणों की जागृति हो, साथ ही नवरात्रि में सात्विक अन्न ग्रहण कर जीवन को सात्विक तरीके से जीने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। व्रत के सम्बंध में सोसाइटी से उन्होंने कहा कि हमें व्रत अपने मन की बुराइयों के सदा के लिये रखना चाहिए उदाहरण के लिए माना किसिमें टीवी अत्याधिक देखने की बुराई है। किसी मे अपना समय डिजिटल मीडिया में अत्याधिक समय देकर नेगेटिव इनफार्मेशन का अंबार मन को बना देने की बुराई है। तो किसी मे कुछ तो किसी मे कुछ तो हमे अपने कमी कमजोरियों को देखना चाहिए उन्हें समझत्व हुवे उन बुराइयों को उन कमजोरियों को अपने से अलग करने के उपायों के बारे में सोचना चाहिए। क्योंकि वह बुराइयाँ हमारे नेगेटिव व्यवहार के रूप में रिफ्लेक्ट होती हैं। उसके पश्चात दिया कि सम्बन्ध में डॉक्टर गुप्ता ने सबको संबोधित करते हुवे बतलाया कि हमें शिक्षा रूपी ज्ञान से इस समाज को प्रकाशित करना है जिस तरह एक दीया जिस स्थान पे होता है वह अपने आसपास के स्थान को लाइट से प्रकाशित करता या उसी तरह हमें भी अपने आप को एक दिए के समान बनाना है। कि हम शिक्षा ग्रहण कर जहां भी रहे जहां भी जाएं इस समाज को अपने ज्ञान से प्रकाशित करते रहे यही एक शिक्षित व्यक्तित्व के लक्षण हैं साथ ही हमे दूसरों से मांगने की आदत बन्द करनी चाहिये किसीने कहा है मांगने से मरना भला अर्थात मांगना नेगेटिव आदत है। उसके जगह हमें अपने आप मे देने की आदत इमर्ज करनी चाहिए क्योंकि देना दैवीय संस्कार है। पॉजिटिव आदत है इसे अपने व्यक्तित्व में शामिल कर हमारे पास जो ज्ञान है। जो सुख है जो शांति है है वह दूसरों को देते रहना चाहिए जिससे ही हम श्रेष्ठ समाज की रचना कर सकते हैं। इस तरह से जब हम अपने जीवन पर गरबा के आध्यात्मिक रहस्य को अप्लाई करते हैं। तो हमारा विचार श्रेठ होता है वाणी मधुर होती है व्यवहार पॉजिटिव बनता जो सबको भाता है। व ऐसे व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति के साथ सभी अपना समय व्यतीत कर संस्कारों का आदान प्रदान करने के इक्षुक रहते हैं। तो आज आईपीएस में आयोजित वर्चवलगरबा नृत्य से बच्चों को भारतीय संस्कृति व संस्कार की शिक्षा तो मिली ही मिली साथ ही समाज को एक सुंदर सा प्यारा सा ज्ञान गरबा नृत्य का आध्यात्मिक रहस्य भी डॉक्टर गुप्ता के माध्यम से लोगों तक पहुंच तक पहुंच पाया, आईपीएस द्वारा आयोजित वर्चवल गरबा नृत्य में आईपीएस के बच्चे उनके माताएं बहनें पिता भाई इत्यादि शामिल होकर कार्यक्रम को सम्पन्न बनाने में सहयोग प्रदान किये इस दौरान आईपीएस के डांस टीचर राम जी के द्वारा सबको ऑनलाइन ही गरबा के स्टेप सिखलाये गए। गरबा के लिये बच्चों की उत्सुकता देखते ही बन रही थी बच्चे गरबा नृत्य को लेकर इतने उमंग व उत्साह से भरे हुवे थे कि वह लगातार पूछ रहे थे सर क्या यह कार्यक्रम रोजाना आयोजित होगा वैसे तो आईपीएस ने विद्यालय में डांस टीचर की अलग से व्यवस्था कर रखी है जिससे नृत्य की कला भी बच्चे सीखते रहें। नृत्य उमंग व उत्साह का प्रतीक है। जब हम अत्याधिक खुश होते हैं तो झूमते हैं थिरकते हैं नाचते हैं गाते हैं। अपने अंदर की खुशी को बॉडी के द्वारा नृत्य के रूप में प्रस्तुत कर बयां करते हैं। हमें अपने जीवन मे नृत्य को व संगीत को जगह जरूर देनी चाहिए क्योंकि संगीत व नृत्य जीवन मे उमंग व उत्साह को बाहरी दुनियां में रिफ्लेक्ट करने का एक जरिया है