कोरबा:- आईपीएस के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बतलाया कि आज इंडस पब्लिक स्कूल, बतारी दीपका द्वारा विश्व वरिष्ठ सप्ताह के मद्देनजर वरिष्ठ नागरिकों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण समाज मे अपनाने हेतु उन्हें प्रेरित करने के लिये ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन रखा गया था जिसमे विद्यालय के बच्चे अपने घर के वरिष्ठ के साथ पॉजिटिव वार्तालाप सुनहरे पल व्यतीत करने को कहा गया था व वरिष्ठ के साथ खूबसूरत पॉजिटिव टाइम स्पेंड करने के दौरान उसका वीडियो व फ़ोटो विद्यालय के व्हाटसअप नम्बर पर सेंड करने को कहा गया था, जिसके लिये बच्चों नें ऐसा करते हुवे अपनी वीडियो विद्यालय के व्हाटसअप नंबर पर भेजी व तस्वीरें भी सांझा किये, आज के दौर में लोग घर के वरिष्ठ का स्थान भूलते जा रहे हैं, समाज मे देखा जा रहा है कि घर के वरिष्ठ को वृद्धा अवस्था में अपने से अलग करके या तो वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं, या घर पर ही एक अलग रूम में कैद कर देते हैं, व बिल्कुल ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसा पहला तो वो घर के सदस्य ही ना हो, दूसरा किसी भी काम में उनकी राय लेना ही बन्द कर देते हैं, और धीरे धीरे उनसे बातचीत करना तक बन्द कर देते, व इतना गहरा रिस्ता होने के बावजूद एक इमोशनल गैप सा बन जाता है, फिर ऐसे स्टेज में दोनों ही तरह से अपनी भावनाओं को एक दूसरे से सांझा कर पाना बड़ा ही मुश्किल होता जाता है, या कहें एक शर्म सी महसूस होने लगती है, अपनी बातें उनसे सांझा करने में फिर धीरे धीरे यही डिस्टेंसिंग भावनात्मक रूप से संबंधों में दूरी बनाता जाता है, आज वरिष्ठ के रोक टोक को लोग बोझ सा, बंधन सा महसूस करने लगे हैं, घर के बुजुर्ग की सच्चाई से भरी अनुभव से परिपूर्ण महसूस की हुई बातें एक्सपेरिंस के आधार पर बतलाये गए रास्ते, लोगों को कड़वी व बुरी लगने लगती है, लोग बुराई के रास्ते पर चलते हैं या गलत मार्ग अपनाते हैं तो अक्सर बुजुर्ग उन्हें टोकते हैं, इसलिय नहीं कि वह उनको बुरा लगता है, बल्कि इसलिए क्योकि बुराई के रास्ते पर चलकर कर्म करने वाले के साथ ही बुरा होगा तो, कर्म के फल से बचने के लिये हिदायत के तौर पर अपनी राय रखते हैं, अब मानना ना मानना सामने वाले पर निर्भर करते है, पर उनकी यही अनुभव से भरी सच्ची बातें आज के जनरेशन वालों को बुरी लगने लगती है, उन्हें लगता है कोई उनसे उनकी आजादी छीन रहा है, कोई उनको बन्धनों में बांध रहा है, कोई उन्हें मनपसंद करने से रोक रहा है, पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता कोई वरिष्ठ आपको रोक टोक रहा होता है तो आपके भले के लिये, मर्यदाओं में रहने के लिये, नाकि अपने भले के लिए, हमें कहने वाले के इंटेंशन पर गौर फरमाना चाहिए कि कोई किस उद्देश्य से क्या बात हमसे क्यों कहना चाह रहा है, पर संबंधों के बीच अहंकार आ जाने से पहला तो उनकी बातों को तबज्जो नहीं दिया जाता वहीं दूसरा उल्टा उन्हें ही कड़वे ठेंस पहुंचाने वाले बोल बोल दिए जाते हैं, तीसरा उनके विचारों को इसलिय अप्लीकेशन नहीं करते क्योकि वह पुराने जमाने के हिसाब से कहते हैं व अभी जमाना बदल चुका है पर कहने के अंदाज इतने ठेंस पहुंचाने वाले होते हैं, जो कलेजा ही बाहर आ जाये कितने अरमानों के साथ कोई अपने बच्चों की परवरिश करता है, कि भविष्य में अपने पैरों पर खड़ा हो अपना जीवन खुशहाल जिये पर वही बच्चा जब उन्हीं माता पिता दादा दादी सास ससुर या कोई भी वरिष्ठ से ऐसा नकारात्मक व्यवहार करने लग जाता है जिससे जिगर छन्नी छन्नी हो जाता है, जिसके लिये आज के पीढ़ी में वरिष्ठ के प्रति सकारात्मक व्यवहार करने हेतु मार्गदर्शन करते रहना चाहिये जो कि ऐसा अच्छे विचार उनके जहन का हिस्सा बनकर भविष्य में उनको पॉजिटिव कर्म ऑटोमैटिकली करने हेतु मार्गदर्शन करें।

पहले जॉइंट फैमली हुवा करती थी फिर भी सभी बेटे, बेटी, नाती, पोते, दादा दादी मम्मी पापा सब साथ रहते थे पर वरिष्ठ का स्थान घर के बागवान की तरह होता था मुखीया की तरह होता था, डिसीजन मेकिंग पावर वरिष्ठ पर होती थी क्योकि अनुभव जीवन का उनको अत्याधिक होता है, सब कोई भी कार्य करने से पहले उनसे सलाह मशवरा करते थे, पर आज के दौर में लोग अहंकार के वशीभूत होकर अपने विचार को मैच्योर विचार का हवाला देते हैं व अपने कार्य मे टोका टाकी, रोक टोक, राय मशवरा बिल्कुल भी पसंद नहीं करते क्योकि इससे उनके अहंकार को चोट पहुंचती है, जिस तरह एक बागबान अपनी बागवानी में लगे पौधों की देखरेख करता है, उसकी पालना करता है, उसको पोषण प्रदान करने के सारे यत्न करता है, ठीक उसी प्रकार घर का वरिष्ठ एक बागवान की तरह होता है, जो परिवार के प्रत्येक सदस्य जोकि कलियों के समान होते हैं उन कलियों को खिलने के लिए अपने अनुभव से परिपूर्ण सर्वश्रेष्ठ विचार परिवार के प्रत्येक सदस्य के मन में प्रवाहित करते रहता है, जिस तरह हमारे शरीर के लिए भोजन की आवश्यकता होती है बिल्कुल उसी प्रकार जीवन की पगडंडियों को सदमार्ग पर सही रास्ते पर चलाने के लिए सर्वश्रेष्ठ सकारात्मक प्रैक्टिकल अनुभव से परिपूर्ण विचारों की जरूरत पड़ती है, माना मन का भोजन पॉजिटिव विचार होते हैं, जिस पॉजिटिव विचारों की कमी आज के समाज मे हो चली है जिस पॉजिटिव विचार के कमी की भरपाई घर का वरिष्ठ बागवान अपने अनुभव से परिपूर्ण विचार व्यक्त कर करता है, डॉ गुप्ता नें बतलाया यह जीवन एक नदी के समान है जिसमे वरिष्ठ की भूमिका एक खिवईये के तरह होती है जिस तरह खिवैया नांव पर बैठाकर नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाता है, उसी तरह जीवन रूपी नदी में परिवार का वरिष्ठ एक खिवईया है जो घर के प्रत्येक सदस्यों को अपने अनुभव से परिपूर्ण विचारों रूपी नैया से परिवार के लोगों को जीवन की पगडंडियों पर आई विभिन्न समस्यायों से उबारते हुवे उन्हें जीवन रूपी नदी पर इस पार से उस पार ले जाते हैं।

आगे डॉक्टर संजय गुप्ता( प्राचार्य आई.पी.एस.) ने बतलाया कि इस तरह के आयोजन पहले क्लासेस के दौरान मोरल एजुकेशन के रूप में बच्चों को दिए जाते थे पर अभी वैश्विक त्रासदी के दौरान बच्चे घर पर हैं फिर तो उन्हें पॉजिटिव गतिविधियों में व्यस्त रखना जरूरी है, जिससे मन पॉजिटिव बना रहे इसलिय विभिन्न स्पेशल दिवस पर अलग अलग तरह से ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन कर उनसे ऑनलाइन रूबरू होकर उनके मन में विभिन्न तरह से संस्कार के बीज बोए जाते हैं, इसी तारतम्य में आज का यह आयोजन विश्व वरिष्ठ सप्ताह के मद्देनजर वरिष्ठ के प्रति बच्चों के मन मे पॉजिटिव बीज बोने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था जिसमे विद्यालय के बच्चों ने बढचढ़कर हिस्सा लिया व अपने अपने घरों के वरिष्ठ के साथ खूबसूरत लम्हे स्पेंड करते हुवे अपने वीडियो व फोटोज विद्यालय के व्हाटसअप नम्बर पर भेजे गए।