दिल्ली:- कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली सरकार ने राजधानी के लिए जितनी ऑक्सीजन की मांग की थी उतने की जरूरत नहीं थी। दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन की मांग बढ़ा-चढ़ाकर की थी। ये कहना है सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट का।

सुप्रीम कोर्ट ने यह ऑडिट कमेटी पिछले महीने गठित की थी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि दिल्ली सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चार गुना ज्यादा ऑक्सीजन की मांग की। पैनल ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि दिल्ली ने शीर्ष अदालत में किस आधार पर 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की। ऑडिट के लिए  एकत्र किए गए डेटा में घोर त्रुटियां थीं।

एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता वाले इस पैनल में जल शक्ति मंत्रालय के संयुक्त सचिव सुबोध यादव, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) भूपिंदर एस भल्ला, मैक्स अस्पताल, दिल्ली के संदीप भूधिराजा और पेसो के संजय कुमार सिंह शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने छह मई को पैनल का गठन किया था।

भाजपा साध रही केजरीवाल पर निशाना
ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट सामने आने के बाद भाजपा लगातार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साध रही है। पूर्व क्रिकेटर और गौतम गंभीर ने भी ट्वीट कर कहा कि, अगर अरविंद केजरीवाल में शर्म बची है तो अभी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करिए और देश से कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चार गुना ऑक्सीजन की मांग करने के लिए माफी मांगिए।

अप्रैल मई में हुई थी ऑक्सीजन की किल्लत
अप्रैल और मई माह में दिल्ली के कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी हो गई थी और कई अस्पतालों में तो गंभीर कोरोना मरीजों की ऑक्सीजन की कमी के चलते मौत तक हो गई थी। इसके चलते केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच वाक युद्ध छिड़ गया था।

उस वक्त दिल्ली हाईकोर्ट के दखल पर केंद्र सरकार ने दिल्ली के ऑक्सीजन आवंटन की मात्रा बढ़ाई थी जिसके लिए उसके दूसरे राज्यों के कोटे में कटौती करनी पड़ी थी।

पैनल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली सरकार के 1140 मीट्रिक टन की वास्तविक खपत के दावे में भारी विसंगति पाई गई है। 1140 मीट्रिक टन की खपत का दावा करना 289 मीट्रिक टन की वास्तविक खपत से चार गुना अधिक थी।

दिल्ली के कारण 12 अन्य राज्यों को झेलनी पड़ी किल्लत
ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी ने आगे कहा है कि दिल्ली की अधिक मांग की वजह से 12 अन्य राज्यों को ऑक्सीजन की भारी कमी झेलनी पड़ी क्योंकि उनकी जरूरत का ऑक्सीजन दिल्ली को दिया जा रहा था।

दिल्लीभर में अस्पतालों द्वारा ऑक्सीजन की भारी मांग के चलते सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूण और एमआर शाह ने एक 12 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया और ऑक्सीजन वितरण को लेकर ऑडिट रिपोर्ट पेश करने को कहा।

ऑडिट कमेटी ने अपनी जांच में पाया कि 13 मई को ऑक्सीजन टैंकर अधिकतर अस्पतालों में खाली ही नहीं हो सके क्योंकि वहां पहले ही ऑक्सीजन टैंक 75 प्रतिशत से ज्यादा क्षमता के साथ भरे हुए थे। यहां तक कि सरकारी अस्पताल जैसे एलएनजेपी और एम्स ने भी फुल टैंक होने की बात कही थी।

टास्क फोर्स ने कहा है कि 29 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली में ऑक्सीजन की खपत को लेकर कुछ अस्पतालों द्वारा रिपोर्टिंग में बड़ी गलतियां की गई थीं जिसे सही करना पड़ा। दिल्ली सरकार ने दिखाया कि अस्पतालों द्वारा वास्तविक मांग 1140 मीट्रिक टन की थी। जब इस रिपोर्ट में सुधार किया गया तो यह जरूरत घटकर 209 मीट्रिक टन पर आ पहुंची।

टास्क फोर्स की सिफारिशें

  • टास्क फोर्स की सिफारिश है कि बड़े शहरों जैसे दिल्ली और मुंबई की ऑक्सीजन जरूरत को पूरा करने के लिए ऐसी स्ट्रैटेजी बने जिससे यहां की जरूरत की 50 प्रतिशत ऑक्सीजन का उत्पादन स्थानीय स्तर पर ही हो जाए। या फिर आसपास के इलाकों से मिल जाए।
  • दूसरी सिफारिश है कि सभी 18 मेट्रो शहरों को ऑक्सीजन के लिहाज से आत्मनिर्भर बनाया जाए जिसके लिए कम से कम 100 मीट्रिक टन ऑक्सीजन स्टोरेज की सुविधा शहर में ही हो।

दिल्ली को लेकर पेश अपनी अंतरिम रिपोर्ट में टास्क फोर्स ने ये भी कहा है कि दिल्ली की वास्तविक ऑक्सीजन मांग और बेड की संख्या की गणना में विसंगति पाई गई है। इस डाटा में विसंगति इसलिए पाई गई क्योंकि मांग की न सही से समझ थी और न ही सही गणना की गई।

इस बीच दिल्ली सरकार ने टास्क फोर्स को जानकारी दी है कि ऑक्सीजन की मांग अस्पतालों द्वारा हस्ताक्षरित फॉर्म के आधार पर की गई थी और इस विषय में देखा जाएगा।