• शिक्षक के व्यक्तित्व, ज्ञान एवं आचरण का छात्र के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए शिक्षक को अपने आचरण के प्रति निरंतर सजग रहना चाहिए – डॉ संजय गुप्ता (आई.पी.एस. दीपका)
  • टीचर्स डे- जल जाता है वो दिए की तरह, कई जीवन रोशन कर जाता है । कुछ इसी तरह से हर गुरू, अपना फर्ज निभाता है – डाॅ. संजय गुप्ता।

गुर्रूब्रम्हा गुरु विष्णु: गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात् परं ब्रम्हा तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

कोरबा:- प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को इंडस पब्लिक स्कूल दीपका द्वारा शिक्षक दिवस विद्यालय में सेलिबे्रट किया जाता था। जैसा कि मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से बच्चों के साथ मीटिंग की गई व शिक्षक दिवस सेलिबे्रट किया गया। इस अवसर विद्यालय के प्राचार्य डाॅ. संजय गुप्ता जी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि आज बच्चों को शिक्षक दिवस के अवसर पर ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से जोड़ा गया तथा एक शिक्षक के प्रत्येक के जीवन में महत्ता को बतलाया गया। जिससे ताउम्र उनके जहन में एक शिक्षक की छवि सर्वोपरि बनी रहे। एक शिक्षक मोमबत्ती के समान होता है जो खुद जलकर समाज को प्रकाशित करता है। मौजुदा समय में शिक्षकों की आदर समाज में पहले की अपेक्षा तनिक कम होती चली जा रही है जिसका कारण समाज में मानवीय मूल्यों का हृास होना है। एक वक्त था जब माता-पिता के पश्चात शिक्षक को अपने जीवन में स्थान दिया जाता था। परंतु शिक्षा के व्यावसायिकरण होने के दौर से शिक्षक की आदर किया जाना समाज में कम होता गया। जिन्हें समाज में पुनः समाज में वहीं स्थान प्राप्त करवाया जाना हम सभी शिक्षकों का परम ध्येय होना चाहिए। निश्चित तौर पर एक शिक्षक को निःस्वार्थभाव से शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। शिक्षा की महत्ता से प्रत्येक भलीभांति वाकिफ की ज्ञान का होना जीवन में कितना आवश्यक है और ना होने पर जीवन में क्या दुर्दशा होती है । वैसे संपूर्ण मानव जीवन में विपरीत परिस्थितियां एक परम शिक्षक के तौर पर बहुत कुछ सिखलाती है। परिस्थितियां कुदरत के द्वारा निर्मित की जाती है जिसका सामना करते-करते मानव जीवन रूपी पगडंडियों में चलना सीखता है। जिस प्रकार एक बच्चे की सर्वप्रथम शिक्षिका उसकी माता होती है जहां से उसके जहन में संस्कारों का प्रवाह होता है। उसके पश्चात उस बच्चे के पिता जहां से बच्चे को मनोबल की प्राप्ति होती है। तदोपरांत जब विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने हेतु बालक प्रवेश करता है तो उसके मन के फाउंडेशन का निर्माण करने में व जीवन जीने का तरीका सीखाने में, जीवन से संबंधित विभिन्न ज्ञान से सराबोर करने में एक शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैसे तो हम जीवन जिस किसी से जो कुछ भी सीखते हैं तो छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी सीख प्रदान करने वाला एक शिक्षक की ही भूमिका निभा रहा होता है । पर जो लंबे समय तक हमसे जुड़कर हमारी हर कमियों को दूर कर हमें सदमार्ग में चलाकर भले खुद जलता है मगर जग को प्रकाशित करते चलता है । वह शिक्षक ही होता है । आगे शिक्षक दिवस कब से आरंभ हुआ इस संदर्भ में बच्चों ने जानकारी हासिल की 5 सितम्बर का दिन पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । 5 सितम्बर भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डाॅ. राधाकृष्णन का जन्म दिवस है । उनके जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा कैसे शुरू हुई इसका किस्सा भी बड़ा रोचक है। डाॅ. राधाकृष्णन सन् 1962 में देश के राष्ट्रपति बने । इससे पहले वे देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में श्िाक्षक कार्य करते रहे। जब वे राष्ट्रपति बन गए तो वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय के उनके कुछ पूर्व छात्र उनके पास पहुंचे और उनसे निवेदन किया ‘‘सर हम आपका जन्मदिन मनाना चाहते हैं ।‘‘ कुछ देर विचार करने के उपरांत डाॅ. राधाकृष्णन ने कहा-‘‘यदि आप लोग मेरा जन्मदिन मनाना ही चाहते हैं तो मैं अपना जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना पसन्द करूंगा।‘‘ उनके पूर्व छात्र उनकी बात से सहमत हो गये । मानव सृष्टि की सबसे अनूठी कृति है और बालक है उसका लघु रूप । इस बालक को सजाने, संवारने उसमें आदतों, संस्कारों, कौशलों एवं ज्ञान का विकास कर उसे राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक बनाने का कार्य शिक्षक करता है । इसलिए आदिकाल से ही शिक्षक का समाज में गरिमापूर्ण स्थान रहा है । इन महान शिक्षकों के जीवन से जुड़े यह कुछ प्रसंग समाज में शिक्षक की गरिमा एवं महत्व को प्रतिपादित करते हैं । शिक्षक के कंधो पर राष्ट्र के भावी कर्णधारों के व्यक्तित्व के निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है । इसलिए उसे राष्ट्र निर्माता कहा जाता है । हमारे देश में गुरू शिष्य की लंबी परंपरा रही है । गुरू वशिष्ठ विश्वामित्र, संदीपनी मुनि, आचार्य द्रोण, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, समर्थ गुरू रामदास, बाबा नरिहरि दास जैसे महान गुरूओं की महिमा को कौन नहीं जानता है । समय बदला, परिस्थितियां बदली, वातावरण बदला, परिवेश बदला मगर हर युग में समाज में शिक्षक की गरिमा अक्षुण्ण रही । संसार में जितने भी सुखद परिवर्तन हुए उनमें शिक्षकों ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई । शिक्षक समाज का एक विशिष्ट व्यक्ति है और वह समाज को रचनात्मक दिशा देने का कार्य करता है । शिक्षक ज्ञान का पर्याय होता है । ज्ञान के बिना शिक्षक अधूरा है । इसलिए शिक्षक में ज्ञान को अर्जित करने और ज्ञान को बांटने की ललक होनी चाहिए । छात्र शिक्षक को अपने रोल माॅडल के रूप में देखता है । शिक्षक के व्यक्तित्व ज्ञान एवं आचरण का छात्र के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है । इसलिए शिक्षक को अपने आचरण के प्रति निरन्तर सजग रहना चाहिए । वर्तमान समय में हम विज्ञान एवं तकनीकी के युग में रह रहें हैं । आज छात्र के पास शिक्षक के अतिरिक्त भी ज्ञान को अर्जित करने के अनेक साधन हैं । वह पत्र-पत्रिकाओं, टीवी, इन्टरनेट एवं गूगल के द्वारा विभिन्न प्रकार का ज्ञान अर्जित कर सकता है । इसलिए शिक्षकों के भी समय-समय पर अपने ज्ञान को अपडेट करते रहना चाहिए जिससे उन्हें कक्षा में, किसी असहज स्थिति का सामना नहीं करना पड़े और समाज में शिक्षक की गरिमा बनी रहे।

एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूलआधार है । शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ ही साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है । शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहार कुशलता और योग्यता प्रदान करती है । भारत में शिक्षक को ईश्वर समान माना गया है । आज भी बहुत से शिक्षकीय आदर्शों पर चलकर मानव समाज की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का वहन कर रहे हैं । किसी भी राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है । अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने में कोई रोक नहीं सकता । अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा दब कर रह जायेगी जैसाकि मौजूदा समय में भारत की जो परिस्थिति बनी हुई है जिसमें पूर्व की शिक्षा नीति स्थापित की जा रही है चूंकि भारत को विश्व गुरू बनाने का सपना लोगों के जहन में है जिसके लिए शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन किया जाना आवश्यक था जो कि हो भी रहा है । हम शिक्षकों को यह गौर करना चाहिए कि पिछले दो से तीन दशकों में शिक्षा का व्यावसायिकरण होने से समाज में रटंत विद्या का चलन भी होता रहा जिसकी वजह से आज का मानव समाज समाने आई परिस्थितियों से सामना करने के बजाय घबराकर पीछे हट जाता है या तो अपनी रास्ता बदल देता है । तो इस जीवनशैली में बदलाव करने के लिए मानव मन को सशक्त बनाने के लिए हर एस्पेक्ट्स से सर्वांगीण विकास की तरफ अपना ध्यान लगाना होगा क्योंकि आज का मानव भौतिकतावादी हो चला है । स्वयं के स्किल गुण को निखारने के बजाय बाहृय मुखी हो चला है अपनी शक्तियों को भुल चुका है इसलिए जरा से व्यवहार में कमी होने पर मन की स्थिति विचलित होने लग जाती है व घबराने लग जाती है इससे मौजुदा शिक्षा व्यवस्था की कमी मौजुदा समाज में नजर आती है जिस कमी को पुरा करने के लिए नई शिक्षा व्यवस्था एक रिप्लेसमेंट थैरेपी के तौर पर कारगर साबित होगी ।

आने वाली नई शिक्षा नीति बच्चों के सर्वांगीण विकास पर फोकर्सड होगी जिसमें व्यवहारिक ज्ञान, कौशल विकास, मानसिक विकास, संस्कारों का प्रवाह सभी पहलुओं से बच्चों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा । अभी मौजूदा कोविड-19 त्रासदी के दौरान शिक्षा व्यवस्था ऑनलाइन हो चली जो प्रत्येक शिक्षकों के लिए एक चैलेंज था । इससे पहले किसी ने ऐसे परिस्थिति का सामना नहीं किया था परंतु जैसा कि हमनें पहले ही जिक्र किया कि समय व परिस्थिति सबसे बड़ी शिक्षक है जो इस कोविड-19 के दौरान प्रत्येक को देखने को मिल ही रहा है । साथ ही साथ शिक्षकों को भी पर हम इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के प्रत्येक शिक्षकों में बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा व्यवस्था बदस्तूर जारी रखी जिसके लिए प्रत्येक शिक्षकों का सम्मान करते हुए शिक्षक दिवस के अवसर पर उन्हें सर्टिफिकेट व मैडल से उन्हें सम्मानित भी किया गया । अक्सर लोग समाज में सामाजिक परिवर्तन की बातें किया करते हैं । रास्ते न होने की वजह से बेतुकी बातों से समाज में निगेटिविटी फैला देते हैं जबकि समाज को बदलने का एकमात्र उपाय शिक्षक के तौर पर अशिक्षित को ज्ञान का दान देना है । अगर परिकल्पना की जाये कि जो शिक्षक समाज में न होता तो क्या होता । न कोई डाॅक्टर बनता, न कोई इंजीनियर बनता न बड़े-बड़े उद्योग बनते, न ही दवाईयां बनती । तो सोच सकते हैं कि एक शिक्षक न कि राष्ट्र के निर्माण में बल्कि संपूर्ण विश्व के निर्माण में कितनी अहम भूमिका निभाता है । एक शिक्षक के व्यक्तित्व की विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में अहम भूमिका होती है । जितना श्रेष्ठ शिक्षक का व्यक्तित्व होगा तो उनकी संगत में ज्ञान ले रहे विद्यार्थियों का चरित्र उतना ही उत्कृष्ट होगा । शिक्षकों को विद्यार्थियों के संस्कारों का दिव्यीकरण करने पर बल प्रदान करना चाहिए ।

प्रत्येक विद्यार्थियों को चाहिए कि न केवल शिक्षक दिवस के अवसर पर बल्कि ताउम्र शिक्षक की कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । चूंकि जो कोई भी जीवन में जो कुछ भी बनता है उसके पीछे शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है । चाहे वह फिर स्कूल का शिक्षक हो या फिर जीवन के किसी मोड़ पर कोई छोटी सी छोटी शिक्षा हमें प्रदान की हो । भारत देश शिक्षकों द्वारा मानवीय मूल्यों को जागृत करने हेतु अपनी अलग पहचान बनाता है । अन्य देशों की अपेक्षा भारतीय नागरिकों के मानवीय मूल्य जागृत होने से उनकी संवेदनाएं जागृत होने से भारतीय के व्यवहार अन्य देशों के नागरिकों की अपेक्षा अपने आप में यूनिक है । आज के ऑनलाईन क्लास में बच्चों ने भी उपस्थिति सर्वशिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की ।

आगे डाॅ. संजय गुप्ता ने अपने प्रेस विज्ञप्ति में बतलाया है कि शिक्षक दिवस के अवसर पर हम सभी को अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । इंडस पब्लिक स्कूल दीपका प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस बड़े ही उत्साह के साथ सेलिब्रेट करता आया है व इस वर्ष लाॅकडाउन की परिस्थिति में ऑनलाईन वेबिनार के माध्यम से मीटिंग आयोजित कर विद्यालय के सभी बच्चों के साथ शिक्षक दिवस सेलिब्रेट किया गया । शिक्षक की भूमिका व महत्ता के संदर्भ प्रत्येक बच्चों के जहन में सकारात्मक बीज बोए गए ।