नई दिल्ली:- कोरोना की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए दिल्ली सरकार की ओर से 5000 युवाओं को स्वास्थ्य सहायक बनाने की तैयारी की जा रही है. दिल्ली के 12वीं पास युवाओं से इसके लिए आवेदन मांगे गए हैं. इन्हें 15 दिन की ट्रेनिंग देकर पैरामेडिकल हेल्थ असिस्टेंट के रूप में भर्ती किया जाएगा. हालांकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस कदम की स्वास्थ्य विशेषज्ञ न केवल आलोचना कर रहे हैं बल्कि इस पर रोक लगाने की मांग भी कर रहे हैं.
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्र का कहना है कि यह केजरीवाल का तबाही वाला वोट बैंक एजेंडा है. 12वीं पास युवाओं को महज 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद इस इस तरह नर्सिंग सहायक के रूप में कैसे भर्ती किया जा सकता है. केजरीवाल के इस प्रस्ताव पर तत्काल रोक लगानी चाहिए. दिल्ली के एलजी को चाहिए कि इस पर रोक लगे.
डॉ. मिश्र कहते हैं कि यह वोट बैंक को बढ़ाने के लिए उठाया गया पॉलिटिकली मोटिवेटेड कदम लग रहा है. इससे कोई लाभ नहीं होगा. क्या दिल्ली सरकार के पास मेडिकल कॉलेज या नर्सिंग ट्रेनिंग सेंटर नहीं हैं. अगर लोगों को भर्ती करना ही है तो नर्सिंग और मेडिकल फील्ड के युवाओं को क्यों नहीं भर्ती किया जा रहा. क्या उन लोगों की कमी हो गई है देश में.
इस तरह की भर्ती से मरीजों का भला नहीं बल्कि बुरा ही होगा. ऐसे अधकचरे लोगों को अगर ये मरीजों के इलाज में लगाएंगे तो सोचिए क्या हालात होंगे. यह बहुत हानिकारक है. इन्हें जनरल ड्यूटी में लगाया जा सकता है लेकिन नर्सिंग में नहीं लगाया जा सकता. इस तरह की भर्ती नहीं होनी चाहिए.
केजरीवाल के हिसाब से पूरे हिन्दुस्तान को बनाया जा सकता है डॉक्टर
वहीं नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल से रिटायर्ड और जाने माने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. सतपाल कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल के हिसाब से चलें तो 15 दिन की ट्रेनिंग लेकर हिन्दुस्तान के हर आदमी को डॉक्टर बनाया जा सकता है. इनके हिसाब से चला जाए तो हर आदमी स्वास्थ्य संबंधी मामलों का एक्सपर्ट हो जाएगा और सभी के साथ-साथ अपना भी इलाज कर लेगा और कोरोना इस देश में आएगा ही नहीं.
जब 12वीं पास पैरामेडिकल स्वास्थ्य सहायक बनकर औरों की देखभाल करेंगे और कोरोना के इलाज में मदद करेंगे तो यह तो बेहद सस्ता सौदा है. इसे तो हर राज्य को अपना लेना चाहिए और अपने राज्य के हर व्यक्ति को ट्रेंड कर देना चाहिए. इसके बाद बीमारी तो फैल ही नहीं सकती.
डॉ. सतपाल कहते हैं कि ऐसा लग रहा है जैसे मुख्यमंत्री को हेल्थ असिस्टेंट क्या करता है यही नहीं पता है. यह बेहद बचकाना है या फिर राजनीति से प्रेरित है. ऐसा नहीं होना चाहिए. यह मरीजों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है.
वहीं डॉ. मंजरी त्रिपाठी कहती हैं कि यह वोटों की राजनीति है. मुख्यमंत्री के इस फैसले से लगता है कि मरीज की जान सस्ती है. यह तो ऐसे है कि अब कोई भी स्वास्थ्य देख सकता है. कोई भी इलाज कर सकता है; 15 दिन में नर्स और टैक्निशियन बनाने का यह आइडिया नायाब है. हालांकि ऐसा न किया जाए तो बेहतर है.
आईएमए और नर्सेज यूनियन भी कर रहे फैसला वापस लेने की मांग
वहीं एम्स नर्सिंग यूनियन के अध्यक्ष हरीश कुमार काजला कहते हैं कि जो नर्सेज पहले से काम कर रहे हैं उन्हें उनकी सैलरी न देकर बाहर से किसी को भी भर्ती करके और ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट देकर अब सरकार मरीजों का इलाज कराएगी. यह बेहद खतरनाक है.
वहीं ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. रॉय के जॉर्ज का कहना है कि इस तरह ट्रेनिंग प्राप्त लोगों को नर्स या कम्यूनिटी असिस्टेंट नहीं कहा जा सकता. नर्स होने के लिए एनाटॉमी और फिजियोलॉजी की अच्छी समझ होना जरूरी है. इस तरह के ट्रेंड लोग सिर्फ मरीजों के कपड़े बदल सकते हैं, रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं, मरीजों को इधर से उधर ले जाने का काम कर सकते हैं.
वहीं आईएमए के कई सदस्यों का भी यही कहना है कि दिल्ली सरकार अपने इस आदेश को वापस ले या फिर इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. यह एक जानलेवा फैसला है.