कोच्चि:- केरल हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही मैरिटल रेप के मामले में सजा देने का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है लेकिन इस आधार पर तलाक का दावा किया जा सकता है।  वैवाहिक दुष्कर्म तलाक लेने के लिए एक सही ठोस आधार है। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि विवाह और तलाक से संबंधित मामलों को डील करने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष कानून की जरूरत है। केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मैरिटल दुष्कर्म हालांकि भारत में दंडनीय नहीं है, लेकिन इसके आधार पर तलाक का दावा निश्चित रूप से किया जा सकता है।

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्नी के शरीर को पति द्वारा अपनी सम्पत्ति समझना और उसकी इच्छा के खिलाफ यौन संबंध बनाना वैवाहिक बलात्कार है. कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक की मंजूरी देने के फैसले को चुनौती देने वाली एक व्यक्ति की दो अपीलें खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.

इस दंपत्ति की शादी 1995 में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं. कोर्ट ने कहा कि पेशे से डॉक्टर पति ने शादी के समय अपनी पत्नी के पिता से सोने के 501 सिक्के, एक कार और एक फ्लैट लिया किया था. पारिवारिक न्यायालय ने पाया कि पति अपनी पत्नी के साथ पैसे कमाने की मशीन की तरह व्यवहार करता था और पत्नी ने विवाह की खातिर उत्पीड़न को सहन किया, लेकिन जब उत्पीड़न और क्रूरता बर्दाश्त से परे पहुंच गई तो उसने तलाक के लिए याचिका दायर करने का फैसला किया.

इस मामले में पीड़ित महिला ने कोर्ट के सामने कहा कि डॉक्टर से रियल एस्टेट कारोबारी बने उसके पति ने उसके साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया। उसके पति ने रियल एस्टेट के कारोबार के लिए उसके ऊपर पैसे देने का दबाव बनाया। जिसके बाद पीड़िता के पिता ने उसके पति को 77 लाख रुपए दिए।

साथ ही पीड़ित महिला ने कोर्ट ने बताया कि उसके पति ने उसके साथ शारीरिक हिंसा की। बीमार होने के बावजूद उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। इतना ही नहीं उसके पति ने उसकी मां के मृत्यु के दिन भी शारीरिक संबंध बनाने का दबाव दिया। इसके अलावा उसके पति ने उसे अप्राकृतिक यौन संबंध और उसकी बेटी के सामने भी शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।

इसपर कोर्ट ने कहा कि महिला के द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों से पता चलता है कि उसके साथ यौन हिंसा हुई है और पति ने अपनी पत्नी की सहमति का कोई सम्मान नहीं किया है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप तब होता है जब पति इस धारणा के तहत होता है कि उसकी पत्नी का शरीर का अधिकार उसके पास है। लेकिन आधुनिक सामाजिक न्याय शास्त्र के अनुसार विवाह में पति-पत्नी को समान भागीदार माना जाता है और पति अपने पत्नी पर किसी भी श्रेष्ठ अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।

इस मामले पर सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे देश में विवाह कानूनों में बदलाव करने का समय आ गया है। विवाह और तलाक को अब धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी के अनुसार शादी करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन उसे कानून से मुक्त नहीं किया जा सकता है।