- आई.पी.एस. दीपका में चौधरी मित्रसेन जी के 90 वीं जन्मदिन के सुअवसर पर हुवा हवन, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का दिया संदेश
- करोड़ों में कोई एक विरले ही ऐसे निकलते हैं। जो अपने सत्कर्म के पदचिन्ह छोड़ जाते हैं उनमे से ही एक चौधरी मित्रसेन जी रहे। डॉ संजय गुप्ता आई.पी.एस. दीपका
आईपीएस दीपका के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता से हुई परिचर्चा में उन्होंने बतलाया कि आज चौधरी मित्रसेन जी की 90 वीं जन्मदिन के अवसर पर आईपीएस दीपका में हवन का कार्यक्रम रखा गया जैसा कि हवन का आध्यात्मिक रहस्य है अपने मन के विकारों की आहुति देना जिससे कि मन शीतल व शांत होता है । योगाग्नि में मन के विकार दग्ध होने से आत्मा सतोप्रधान बनती है, निर्मल बनती है हवन का एक और उद्देश्य शांति भी है शांति मन की शांति वातावरण की शांति विश्व के सर्व आत्माओं के लिये जरूरी है क्योकि शांति आत्मा का मूल धर्म है । हम हंसते हैं रोते हैं कितने ही भावनात्मक स्टेजस से हम दिन भर गुजरते हैं पर जब हम खाली होते हैं तो सिर्फ शांत ही होते हैं क्योकि शांति आत्मा का मूल धर्म है । चौधरी मित्रसेन जी का जीवन एक आदर्श है । उनके विचार एक पदचिन्ह छोड़ गए जिसपर चलकर भावी पीढ़ी का भविस्य उज्वल बन सकता है । इस परिवर्तनशील संसार मे जिसने जन्म लिया है । उसकी मृत्यु भी निश्चित है । लेकिन जन्म लेना उसी का सार्थक है जो अपने कार्यों से कुल, समाज, राष्ट्र को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता है । चौधरी मित्रसेन जी के जीवन मे सत्य, संयम और सेवा का अदभुत मिश्रण नजर आया उनका जन्म 15 दिसम्बर 1931 को हरियाणा के हिसार जिले के खांडा खेड़ी में हुवा था । एक गृहस्थ और व्यवसायी होते हुवे भी उन्होंने अपने जीवन मे ऐसे आदर्श स्थापित किये जिन्हें यदि हम अपना लें तो रामराज्य की कल्पना साकार की जा सकती है । जैसा कि एक स्लोगन है बुरा मत देखो बुरा मत सुनो बुरा मत बोलो तो चौधरी जी के विचार उससे एक कदम आगे थे उनका कहना था कि कर्म की शुरुवात मानव मन मे विचारों के रूप में होती है । अगर हम बुरा सोचेंगे ही नहीं तो बुरा बोलने का बुरा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता तो बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो बुरा मत देखो व साथ ही बुरा मत सोचो अगर मनुस्य अपनी सोच को ही सकारात्मक बना दे तो उसका जीवन उत्थान की ओर बढ़ने लगता है । अर्थात चढ़ती कला जीवन मे आ जाती है । आज हर तरफ देखेंगे तो पाएंगे कि मानवीय मूल्यों का सामाजिक जीवन मे हास होने से समाज मे अच्छाइयों का पतन होता जा रहा है । जिसकी वजह है मनुस्य की बह्यमुखता, जितना मनुस्य दुनियावी चकाचौन्ध में माया के वश होता जाता है उसके मानवीय मूल्यों का हास होता जाता है । इसे ही जीवन की उतरती कला कहते हैं । क्योकि मानवीय मूल्यों का हास माना मनुस्य में गुणों की कमी होते जाना जिसका प्रभाव उसके व्यवहार पर पड़ता है । और उसके बोल, विचार, कर्म नकारात्मक होते हैं । निर्णय शक्ति परखने की शक्ति, सहन शक्ति, त्याग, सहयोग की शक्ति इस तरह से आत्मा की अष्ठ शक्तियों का पतन होता जाता है तो सर्वप्रथम तो अपनी आत्मा का बोध होना की मैं यह शरीर नहीं बल्कि एक चैतन्य शक्ति आत्मा हूं उसके पश्चात अपनी आत्मा के शक्तियों को योगाग्नि से जागृत करना, सन्यास माना अपने विकारों से सन्यास चौधरी मित्रसेन जी ने अपने नेगेटिव संस्कारों का सन्यास कर पॉजिटिव संस्कारों को जीवन मे आत्मसात किया था जो उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बनकर उनके विचार, वाणी कर्म में रिफ्लेक्ट होते थे । बच्चियो को शिक्षित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा, इस तरह उन्होंने महिला शशक्तिकरण को बल प्रदान किया जब हरियाणा व पंजाब में बेटियों को बेटों से कम आंका जाने लगा व समाज एक तरफा पुरुष प्रधान बनने से बेटियों के प्रति व नारियों के प्रति नकारात्मक दृश्टिकोण रखा जाने लगा, जिससे उनके प्रति शोषण व अत्याचार बढ़ने लगा तब चौधरी मित्रसेन जी ने ऐसे समय मे उन स्थानों में शिक्षा की अलख जगाई व खांडा खेड़ी ग्राम में ही उन्होंने एक स्कूल खुलवाया, साथ ही परिवर्तन की शुरुआत उन्होंने अपने घर से भी की थी उन्होंने अपनी धर्म पत्नी को भी शिक्षा दिलवाई थी उनका मानना था एक पढ़ी लिखी गृहणी घर अच्छी तरह संभाल सकती है । उनके इस प्रयास ने बेटी बेटे में फैले सामाजिक असमानता का खंडन किया इस प्रकार उनके विचार सदैव सर्वश्रेष्ठ रहे व उनके विचारों की बदौलत वह ख्याति प्राप्त करते गए । उन्हें यह प्रैक्टिकल लाइफ में अनुभव हो चुका था कि परिवर्तन की शुरुवात स्वयं से होती है इसलिय जबकभी उन्हें बाहर की दुनियां में कोई परिवर्तन करना होता था तो सबसे पहला परिवर्तन वह अपनी आंतरिक दुनियां में अपनी अंतरात्मा में करते थे । जो ही फिर बाहरी दुनियां में रिफ्लेक्ट होता था ।
आगे आईपीएस के प्राचार्य ने बतलाया कि आज चौधरी मित्रसेन जी की विचारों को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से बच्चों तथा पालकों को जोड़कर चौधरी मित्रसेन जी के विचारों को उनके आदर्शों को लोगों को सामने रखा गया उनकी जीवन शैली व आंतरिक परिवर्तन के किस्से, उनके द्वारा किये गए मानव समाज के उत्थान कार्यों को लोगों को सुनाया गया ताकि लोग उन धारणाओं को अपने जीवन मे आत्मसात कर स्वयं में भी आंतरिक परिवर्तन कर सकें साथ ही विद्यालय प्रांगण में कोविद 19 के नियमों का पालन करते हुवे हवन का आयोजन किया गया जिसमें विद्यालय के शिक्षक शिक्षकायें, कुछेक बच्चे व गेस्ट के रूप में श्री जौहरी मल जी, श्री रूपचंद सिंधु, आचार्य हेमलाल शास्त्री से मौजूद रहे इस दौरान श्री रूपचंद सिंधु जी ने चौधरी मित्रसेन जी के व्यक्तित्व का बखान करते हुवे एक कविता पेश की उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि जीवन पर्यंत आदर्श पर चलने और समाज को एक दृष्टि व दिशा देने वाले चौधरी मित्रसेन जी भले ही भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं पर उनके विचार, कार्य व उनका दृश्टिकोण हम सबको सदैव मार्गदर्शन प्रदान करता रहेगा, उनका कहना था जाती का निर्धारण जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होता है । चौधरी मित्रसेन जी सच्चे आर्यसमाजी थे, उनका मानना था कि हमें अपनी संतान को धन दौलत देने से कहीं अच्छा है कि हम उन्हें सहीं संस्कार प्रदान करें इस तरह से हवन उपरांत अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात ऑनलाइन वेबिनार के क्रियान्वयन उपरांत अंततः कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुवा ।