• बड़े-बुजुर्गों की सेवा करने से उनसे मिली दुआएं जिंदगी के विपरीत क्षण पर मददगार बनकर जीवन के पथ पर निरंतर उन्नति में सहायक होती है – डाॅ. संजय गुप्ता
  • जीवन के राज और अनुभव केवल वे लोग ही जानते है जिन्होंने जीवन को जिया हैं रेस्पेक्ट यॉर ग्रैंड पैरेंट्स. – डॉ. संजय गुप्ता

कोरबा:- आई.पी.एस. दीपका द्वारा ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन कर ग्रैंड पैरेंट डे के अवसर पर दादा-दादी, नाना-नानी के प्रति सकारात्मक व्यवहार किये जाने की बोई गई बीज जैसा कि सर्वविदित है कि आज का दिन ग्रैंड पैरेंट डे के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य जिसका मूल उद्देश्य समाज मे ग्रैंड पैरेंट के प्रति व्यवहार को सकारात्मक बनाये रखना व प्रत्येक के जीवन मे ग्रैंड पैरेंट की महत्ता को बतलाना है एक सोशल अवेयरनेस के तौर पर आज इंडस पब्लिक स्कूल दीपका द्वारा ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया जिसमें बच्चों को ग्रैंड पेरेंट्स के संग कुछ सुनहरे पल बिताते हुवे, तस्वीरे सांझा करने को कहा गया था साथ-साथ ऑनलाइन मंच पर ग्रैंड पैरेंट की महत्ता बतलाने हेतु भाषण वादन का आयोजन किया गया था जिसमे बच्चों को अपने अति स्नेही दादा दादी नाना नानी के प्रति अपने सकारात्मक विचार व्यक्त करने थे

दादा और दादी घर के सबसे बड़े सदस्य होते हैं और सभी लोग इनका बहुत आदर करते हैं। घर पर हर कोई इनकी बात मानता है और इन्हें बच्चों बहुत ही प्यार होता है।बच्चों को भी इनसे अलग ही लगाव होता है।दादा-दादी को अच्छे बुरे का ज्ञान होता है क्योंकि वह अपनी जिंदगी के सभी पड़ावों को पार कर जीवन के अंतिम पड़ाव में होते हैं।घर में बड़े-बुजुर्गपेड़ की तरह होते हैं जो हमें सही राह दिखाकर छाया प्रदान करते हैं।बड़ों का आशीर्वाद सफल होने के लिए बहुत ही आवश्यक है।आज के दोर में लोग अपने व्यवसाय के कारण अपने घर से दूर जाकर रहने लगे हैं, जिसकी वजह से बच्चे अपने दादा-दादी के प्यार से वंचित हो जाते हैं। वह जिंदगी के उन पाठों को कभी नहीं सीख पाते जो केवल दादा-दादी ही उन्हें सिखा सकते हैं। आज के बच्चों का जीवन चार दिवारी में सिमटकर रह जा रहा है, अगर गौर फरमाए पिछले दो-तीन दशकों पूर्व पर तो नजर आता है कि पहले जॉइंट फैमिली हुआ करती थी लोग अपने मां बाप भाई बहन व बच्चों के साथ रहा करते थे परन्तु धीरे धीरे आज के समय में व्यवसाय रोजगार हेतु अपने गृह ग्राम को छोड़ दूर अंचल पर काम करते लोग अपने परिवारों से दूर होते गए और आज पति पत्नी व उनके बच्चों को ही परिवार कहा जाने लगा जिसमें दादा दादी नाना नानी चाचा चाची इत्यादि विभिन्न रिश्ते तनिक दूर होते गए, इमोशनली हम उनसे दूर होते गए और अपने जीवन की दिनचर्या भी सच्ची सच्ची शेयर करने के बजाए दिखलावे के जीवन शैली को सत्य साबित करते गए, जिससे सबका जीवन जीवन अलग-थलग उथल पुथल रूप से जीने लगे इसके परिणाम स्वरूप आज की जनरेशन में बच्चे जो कभी दादा-दादी के सानिध्य में जिनके जहन में संस्कारों का प्रवाह होता था आज के बच्चे जीवन में छोटी सी समस्याएं आने पर भी उन्हें सामना करने के बजाय घबराने लग जाते हैं, बुजुर्ग पीढ़ी के लोग भावी पीढ़ी के लिए सारथी की भूमिका निभाते हैं, आज के बच्चे जीवन के सदमार्ग से दिग्भ्रमित हो चले हैं, क्योंकि उन्हें जीवन का पाठ पढ़ाने वाला आज उनके साथ कोई नहीं विद्यालय में जरूर किताबी ज्ञान मिलता है पर जीवन हेतु जीने का अनुभव से परिपूर्ण सत्य ज्ञान जो दादा दादी से बच्चों के जीवन में प्राप्त होता था वह आज नहीं हो रहा है जिससे यह मानव समाज भटकता जा रहा है, आज पिता अपने रोजगार में व्यस्त तो वही माता गृह कार्य में व्यस्त रहती है और इस व्यस्तता के मध्य बच्चे पर उनका ध्यान कम रहता है पहले जब दादा दादी नाना नानी के सानिध्य में जब बच्चे पले पढ़ते थे तब बच्चे उनके साथ खेल खेल में ही जीवन की विभिन्न अनुशासन को सिखा करते थे कहानियों के माध्यम से इनमें संस्कारों का प्रवाह होता था क्या सही क्या गलत इनकी पहचान ग्रैंडपेरेंट्स दिया करते थे हालांकि कुछ घरों में आज भी ग्रैंडपेरेंट्स है पर ओवरऑल बात की जाए तो पहले की अपेक्षा में परिवार छोटा होकर सिमट चला है आज का मानव भौतिकता वाद की तरफ अत्याधिक आकर्षित हो चला है, वही भावनात्मक तौर पर कम होता जा रहा है पिछले दो से तीन दशक पूर्व पर तो नजर आता है कि पहले जॉइंट फैमिली हुआ करती थी लोग अपने, बच्चों को सिखलाया गया की हमें उनकी जरूरतों का ख्याल रखना, उनके अधूरे सपनें जानकर उनके जीवित रहते पूर्ण करना चाहिए. चलने में असमर्थ हो तो उन्हें दोस्तों रिश्तेदारों से मिलवाना, उनके साथ खेल खेलना तथा सुबह या शाम में उनकी वाक के साथ जाना, बाते करना और व्यंजन खिलाकर हम उनके जीवन के अंतिम पडाव को अधिक खुशनुमा कर सकते हैं. बुजुर्ग पीढ़ी के लोग भावी लोगों के लिए सारथी की भूमिका निभाते हैं. वे हमारे जीवन के जिन्दा इतिहास के साक्ष्य होते हैं. हर कोई अपने दादा दादी से अथाह प्रेम करता हैं. दादा पाते या दादी पोते पोती के रिश्ते एक अच्छे दोस्त से भी बढ़कर होते हैं. वे हमें न सिर्फ ढेर सा प्यार देते हैं बल्कि ज्ञान रुपी मोती भी प्रदान करते हैं.

आगे डॉ. संजय गुप्ता प्रिंसिपल आईपीएस दीपका ने अपने विज्ञप्ति में कहा कि आई पी एस दीपका प्रत्येक स्पेशल दिवस के अवसर पर उस दिवस के भाव, सार को चरितार्थ करने के उद्देश्य से उसको प्रैक्टिकल जीवन में अप्लाई करवाये जाने के मकसद से इस तरह की सामाजिक गतिविधियां आयोजित करता आया है वैश्विक त्रासदी के दौरान लॉक डाउन रूपी अवस्था मे हम ऑनलाइन माध्यम से बच्चों से जुड़कर पढ़ाई करवाये जाने के साथ साथ उन्हें सोशल एक्टिविटी के माध्यम से भी उन्हें इन्वॉल्व रखते हैं इससे बच्चों का मानसिक विकास अच्छे से होता है व भावनात्मक रूप से बच्चे का मनोबल मजबूत होता है व जीवन मे बच्चा दृणता व आत्मविश्वास से भरपूर होकर हर कार्यक्षेत्र में सकुशल सफलता हांसिल करता है आईपीएस दीपका विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर फोकस करता आया है आज ग्रैंड पैरेंट डे के अवसर पर विद्यालय की ओर से ऑनलाइन वेबिनार मंच के माध्यम से सभी बच्चों से जुड़कर उन्हें जीवन में ग्रैंड पैरेंट की महत्ता को बतलाया गया व उनके प्रति सकारात्मक दृश्टिकोण अपनाते हुवे सदव्यवहार किये जाने के संस्कार उनके जहन में प्रवाहित किये गए जिससे कि।वह ताउम्र अपने दादा दादी नाना नानी की सेवा कर उनके आशीर्वाद से व अपने कर्मों से अपने जीवन को खुशहाल बना सके