• हिंदी में बात है क्योंकि हिंदी में जज्बात है | हिंदी हमारी शान है, देश का अभिमान है | डॉ. संजय गुप्ता आई.पी.एस. दीपका
  • बच्चों में हिंदी के लिए गर्व की भावना का विकास हो- डॉ संजय गुप्ता
  • हिंदी दिवस के अवसर पर आई.पी.एस. दीपका द्वारा हिंदी की महत्ता के बीज विद्यार्थियों के जहन में बोने हेतु ऑनलाइन कार्यशाला के माध्यम से हिंदी अखबार रिडिंग, हिंदी टाइपिंग, हिंदी भाषण, पसंदीदा टॉपिक पर हिंदी में अभिव्यक्ति, हिंदी स्लोगन, हिंदी कविता व हिंदी निबन्ध लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गई
  • हिंदी सिर्फ भाषा नहीं है, एक एहसास भी है । आखिर इस अहसास को और कैसे मजबूत बनाएं, कैसे अपने करीब लेकर लाएं, समय के साथ कैसे इसे कदमताल करवाएं, आज यही सवाल सबसे बड़ा है । आखिर कैसे दुनिया के दिल में होगी हिंदी ।

कोरबा:- इंडस पब्लिक स्कूल (Indus Public School) के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता (Dr Sanjay Gupta) ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी हिंदी दिवस के अवसर पर आई.पी.एस. दीपका द्वारा ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन कर हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के मकसद से कार्यशाला का आयोजन रखा गया जिसमें बच्चों को हिंदी में वाद विवाद, कविता, भाषण, निबन्ध लेखन, मनपसंद टॉपिक पर अभिव्यक्ति व्यक्त करना अपनी भावनाएं किसी टॉपिक पर लिखकर या बोलकर व्यक्त करना इस के आयोजन आयोजित किये गए, आज के कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के मध्य हिंदी मातृभाषा को प्राथमिकता दिए जाने के बीज बोना, व हिंदी को बढ़ावा दिए जाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था, आगे डॉक्टर संजय गुप्ता ने अपने विज्ञप्ति में जिक्र किया है की जिस तरह इस शरीर को चलाने वाली प्राण ऊर्जा शक्ति आत्मा है बिल्कुल उसी तरह हिंदुस्तान को चलाने वाली प्राण शक्ति वह आत्मा हिंदी है, हिंदी फाउंडेशन है प्रत्येक भारतीय की, हिंदी भारतीय संस्कृति भारतीय सभ्यता व संस्कार के अभिव्यक्ति का आधार है, भारत की मिट्टी में हिंदी समाई हुई है, प्रत्येक भारतीय नागरिक के मन में हिंदी समाई हुई है, हिंदी हमारी भारत की मातृभाषा है, 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राज्य भाषा का दर्जा मिला तब से ही प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता रहा है, विश्व में हिंदी का स्थान तीसरा है तथा तकरीबन 80 करोड़ लोग हिंदी बोल सकते हैं हिंदी समझ सकते हैं हिंदी लिख सकते हैं भारत में सिनेमा जगत में भी हिंदी का एक अपना अलग ही पहचान है वही शासकीय कार्यों में भी हिंदी को स्थान मिला हुआ है हिंदी दिवस के अवसर पर राज्य भाषा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने के मकसद से इंडस पब्लिक स्कूल दीपिका द्वारा विभिन्न तरह के आयोजन आयोजित किए गए आज ऑनलाइन वेबीनार के माध्यम से बच्चों में हिंदी के प्रति लगाव व हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्यशाला का आयोजन किया गया था | जिसमें बच्चे अपनी रुचि अनुसार भाषण वादन, लेखन, समाचार वादन, हिंदी स्लोगन, इत्यादि प्रस्तुतीकरण किए गए हिंदी हिंदुस्तान का अभिमान है हिंदी भारत की शान है हिंदी सभी भाषाओं को अपने में समा लेता है संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के 45 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही हिंदी, हिंदी विभिन्न राज्यों के लोक भाषा और उर्दू के समागम से बनी, आज विज्ञापन के जगत में भी हिंदी ने अपनी अस्तित्व बरकरार रखे हुवे हैं, हिंदी है दिल से जुड़ने वाली भाषा भावनाओं को बयां करने वाली भाषा क्योंकि हम बचपन से जिस भारतीय माहौल में पले बढ़े होते हैं उसमें हिंदी में पढ़ना हिंदी में बोलना हिंदी में सोचना हमारे व्यवहार में शामिल रहने से हिंदी कब हमारे व्यवहार का हिस्सा बन जाती है समझ ही नहीं आता, इस तरह से हिंदी हमारे सबकॉन्सिस माइंड के विचारों के उत्तपत्ति का आधार बन जाती है व ऑटोमेटिकली हम हिंदी में बोलने, ल8कहने, अभिव्यक्त करने लग जाते है, हिंदी इस तरह से संस्कार बनकर हमारी सोच का आधार बन जाती है और आज इसी वजह से ज्यादातर भारतीय नागरिक सोचते भी हिंदी में है बोलते भी हिंदी में लिखते भी हिंदी में है कम्युनिकेशन की भाषा हिंदी है आपस में वार्तालाप की भाषा हिंदी है, भावनाओं के आदान-प्रदान की भाषा हिंदी है, समझने की भाषा हिंदी है, जब हम अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करने के बाद अगर हम किसी अन्य भाषा में पढ़ाई करते हैं तो हमें दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि बचपन से हम जिस भारतीय माहौल में पले बढ़े वहां की मातृभाषा हिंदी होने से हमारे सोचने का हमारे लिखने का हमारे कहने का हमारे समझने का आधार हिंदी ही रहा इसलिए जब हम अन्य किसी भाषा में पढ़ाई करते हैं तो हमें चीजों को समझने के लिए दुगनी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि पहले अन्य भाषा में पढ़ी गई चीजों को हिंदी में हमारा माइंड कन्वर्ट कर ट्रांसलेट करता है, उसके बाद हम उस माइंड में समझ पाते हैं कि वास्तव में जो लिखा या बोला गया है उसका भावार्थ क्या है, और जब हम समझते हैं तो उसके अनुसार ही उसे एक्सप्रेश कर पाते हैं, इस तरह से हिंदी हमारी मातृभाषा होने के साथ-साथ प्राथमिक तौर पर भारत में हिंदी का ही बोलबाला है और जब से डिजिटल युग में सोशल मीडिया का दौर आया है तब से हिंदी बुलेट ट्रेन की माफिक हो चली है, पहले हिंदी की रफ्तार कछुवे के समान तनिक धीमी नजर आती थी परंतु आज प्रत्येक भारतीय व विश्व के प्रत्येक नागरिक के हाथ में मोबाइल होने से सभी अपनी भावनाएं सोशल मीडिया में बयां कर रहे हैं जिसमें भारतीयों के भावनाओं को एक्सप्रेस करने की भाषा मातृभाषा हिंदी में लोग अपनी भावनाएं बयां करते नजर आ रहे हैं, कोई फेसबुक ट्विटर ब्लॉगिंग साइट्स पर अपने विचार लिख रहा है कोई सोशल मीडिया में कहानी, कविता पोस्ट लिख या बोल रहा है, तो कोई अपने जिंदगी की कहानी लिख रहा है तो कोई राजनीति पर अर्थव्यवस्था पर अपने विचार रख रहा है, इस तरह से अपने मन की बातें भारतीय लोग हिंदी में सोशल मीडिया पर बयां करते नजर आ रहे हैं, हालांकि अनेक राज्यों के अनेक लोक भाषा होती है परंतु ओवरऑल अगर देखा जाए तो हिंदी मातृभाषा होने के मद्देनजर ज्यादातर कम्युनिकेशन लोग सोशल मीडिया में भी हिंदी में ही करते नजर आ रहे हैं, भारत के हर क्षेत्र में हिंदी ने हाजिरी लगाई है चाहे वह विज्ञापन के जगत में हो या हिंदी सिनेमा के जगत में पत्रकारिता के जगत मेँ खेल के जगत में साहित्य के कला के विज्ञान के जगत में हर जगह हिंदी भाषा नें अपनी पहचान बना अस्तित्व बरकरार रखा, हिंदी है दिल से जुड़ने वाली भाषा, भावनाओं को बयां करने वाली भाषा अगर बात करे भारत के लोकतंत्र में हिंदी की महत्ता की तो नेताओं को अगर जनता तक अपनी बात पहुंचानी हो तो वे हिंदी का ही सहारा लेते रहे हैं, जो कि हिंदी को शहरों में भी समझने वाले होते हैं वहीं ग्रामों में भी हिंदी समझ पाते हैं, सामाजिक सरोकार और जन आंदोलनों की भाषा हिंदी ही रही खेल जगत में भी हिंदी कॉमेंट्री का एक अपना अस्तित्व रहा, सिनेमा जगत की तमिलनाडु की वैजयंती माला, हेमा मालिनी या साउथ की ऐश्वर्या राय, मकल हसन ऐसे कितने हिंदी सिनेमा में ही अपनी पहचान राष्ट्रीय या वैश्विक स्तर पर बना पाए आज गूगल और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनीयों नें हिंदी की ताकत को पहचाना है, बेर सबेर हमारे देश के लोग भी इसे पहचानेंगे, आज हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी लोकप्रिय भाषा है, आज के नए दौर में हिंदी को डिजिटलाइजेशन ने एक नए शिखर पर पहुंचाया है, किसी भी देश की पहचान वहां की मातृभाषा से होती है, किसी विदेशी भाषा से कोई देश महान नहीं बन सकता देश की उन्नति अपनी मातृभाषा से ही हो सकती है, हिंदी भाषा का अधिक से अधिक विकास व जन जन तक इसे पहुंचाने के उद्देश्य प्रत्येक भारतीय नागरिक का होना चाहिए व प्रत्येक को यह संकल्प लेना चाहिए कि संपूर्ण विश्व में हिंदी भाषा का विकास एवं उत्थान करना, हमें अपने भारत देश की प्राण भाषा मातृभाषा हिंदी दिवस को बड़े ही गर्व एवं उल्लास से मनाना चाहिए क्योकि भाषा के बिना किसी समाज संस्कृति के अस्तित्व की कल्पना तक नहीं की जा सकती यह हमारे लिए बेहद शर्मनाक बात है कि राष्ट्रभाषा को आज तक संवैधानिक स्थान नहीं मिल सका और हिंदी संवैधानिक राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई बिना राष्ट्र की भाषा के राष्ट्र गूंगा, अव्यवस्थित होता है आगामी कुछ समय उपरांत कक्षा पांचवी तक मातृभाषा में पढ़ाई हिंदी कि अंग्रेजी स्कूलों सबके लिये अनिवार्य होने को है चूंकि भारत सरकार के नई शिक्षा पद्धति के अनुसार कक्षा पांचवी तक मातृभाषा में पढ़ाई करवाया जाना कंपल्सरी होने जा रहा है इससे बच्चे अपनी मातृभाषा में चीजों को जल्द व सरलता से सिख पाएंगे, अगर यही व्यवस्था 12 वीं के बाद विभिन्न तरह के रोजगारोन्मुखी कोर्स को हिंदी में कर दिया जाए तो जो समय अंतराल प्रत्येक कोर्स कंप्लीट करने में लग रहा है जैसे इंजीनियरिंग में 4 से 5 वर्ष, एमबीबीएस में 4 से 5 वर्ष, फार्मेसी की डिग्री में में 4 से 5 वर्ष वह सभी व्यावसायिक पाठ्यक्रम, रोजगारोन्मुखी कोर्स को अंग्रेजी से हिंदी करवा दिया जाए तो भारतीयों को दुगनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योकि अभी की शिक्षा व्यवस्था में भारतीयों को अंग्रेजी के कोर्स पढ़कर उसे अपनी मातृभाषा में समझना पड़ता है फिर उन्हें हिंदी में ट्रांसलेट कर अपने मन में समझने के योग्य बनाना पड़ता है फिर मन में उन सब चीजों को रट्टा मारना पड़ता है उससे तो अच्छा है कि अगर जितने अंग्रेजी के कोर्स हैं उन्हें अगर हिंदी में कर दिया जाए तो लोगों को जो दुगुनी मेहनत लग रही है वह कम हो जाएगी क्योंकि जब मातृभाषा में लोग पढ़ेंगे तो चीजों को जल्द ही समझ पाएंगे और मन धारण करके फिर उन चीजों को बयां भी कर पाएंगे मगर आज लोग चीजों को समझ नहीं पा रहे हैं इसलिए उसे प्रैक्टिकल जीवन में अप्लाई भी नहीं कर पा रहे हैं, हमें जरूरत है कि भारत देश में ना केवल पांचवी तक बल्कि आगे के चलकर भविष्य में जो रोजगरोन्मुखी कोर्स को भी हिंदी में उपलब्ध करवाया जाना चाहिए इससे लोग चीजों को मातृभाषा में समझ कर प्रैक्टिकल जीवन में अप्लाई कर पाएंगे वरना आज जब हम किसी कॉलेज पास आउट व्यक्ति से पूछते हैं कि भाई साहब अल्फा बीटा का जीवन में क्या उपयोग है तो सायद कोई बतला न पाए क्योंकि आज की पीढ़ी चीजों को समझने में नहीं बल्कि चीजों को रटकर अंक अर्जित करने में अपना ध्यान ज्यादा एकाग्र किए हुए हैं लोगों को समझना होगा कि उन्हें अपनी मातृभाषा में चीजें समझने में आसानी होती है उदाहरण के तौर पर अगर किसी उत्तर भारतीय की पढ़ाई जब हिंदी में 12वीं तक होती है उसके पश्चात जब वह दक्षिण भारत में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए जाता है व उच्चस्तरीय शिक्षा हासिल करने के लिए जाता है तो ऐसी स्थिति में अब तक यह परिस्थिति थी कि उसे एक ही बार में उसका सामना हिंदी की बजाए अंग्रेजी से होता है और फिर वह चीजों को समझ कर धारण कर लिखने के बजाय चीजों को रटकर लिखने लगता है इससे ज्ञान को प्रैक्टिकल जीवन में एप्लीकेशन ना हो पाने से ज्ञान की महत्ता कम हो जाती है, निश्चित ही हमें सीखने के लिए अपनी दिलचस्पी अनुसार कितने भी भाषाओं को सीखा जा सकता है, चाहे वह अंग्रेजी हो फ्रेंच हो या अन्य कोई भाषा परंतु हमारी मातृभाषा वह देश में चलने वाली जो भाषा हिंदी है उसको सर्वोपरि स्थान अपने मन में देना ही होगा जिससे ही राष्ट्र उन्नति करेगा जब संपूर्ण देशवासी ही आपस में कम्युनिकेशन करके एक दूसरे के स्किल्स को गुणों को समझकर सांझा नहीं पाएंगे तो देश भला कैसे तरक्की करेगा बिना एकल भाषा के संपूर्ण देश में लागू किए जाने से राष्ट्र एक गूंगा सा बना हुआ है, जब संपूर्ण राष्ट्र में एक मातृभाषा होगी तो संपूर्ण देशवासी अपनी भावनाएं एक दूसरे से सांझा कर पाएंगे भले ही अपनी राज्य भाषा को राज्य तक या घर परिवार तक इस्तेमाल किए जाएं परंतु एक राष्ट्र में एक राष्ट्रभाषा का भी होना अत्यंत ही आवश्यक है, जिससे कि एक ही राष्ट्र के एक राज्य के लोग दूसरे राज्य के लोगों से कम्युनिकेशन कर सकें और आपस में ज्ञान का आदान प्रदान व्यापारिक लें देन कर सकें आज चीन दुनिया में सबसे ज्यादा बोलने व समझने वाली भाषा बन चुकी है जिसकी वजह से चीन का व्यापार न केवल चीन तक सीमित है बल्कि संपूर्ण विश्व में चीन का व्यापार फैल चुका है, अगर हम प्रत्येक भारतवासी अपने हिंदी को प्राथमिक भाषा के तौर पर अपने मन में स्थान देते हैं तो निश्चित तौर पर हम भी इसे वैश्विक स्तर पर प्रथम स्थान पर लाकर खड़ा कर देंगे वैसे भी भारत विश्व गुरु बनने के कगार पर है और हिंदी का वैश्विक स्तर पर प्रथम स्थान पर आना निश्चित है इसमें कोई दो मत नहीं बस समय की खेल है जैसे ही भारत विश्व गुरु बना हमारी मातृभाषा हिंदी भी इस विश्व गुरु भारत का प्राण भाषा बनकर वैश्विक स्तर पर अपनाई जाने वाली भाषा बनकर उभर जाएगी और वैसे भी भारत में डिजिटलाइजेशन के आने से भारत के लोग जो अपनी भावनाएं हिंदी में व्यक्त कर रहे हैं इससे कछुए की चाल चलने वाली हिंदी आज बुलेट ट्रेन की तरह बनकर प्रत्येक भारतीयों के विचारों के आदान प्रदान कम्युनिकेशन की मुख्य भाषा बनकर उभरती ही जा रही है हम सभी को अपने राष्ट्रभाषा का सम्मान करना चाहिए व बेहिचक दुनियां के किसी भी मंच पर मातृभाषा में कम्युनिकेशन करना चाहिए चूंकि हम अपने दिल की भावनाएं हिंदी में अत्यधिक सहजता से रख सकते हैं, हिंदी जननी भाषा है जो सभी भाषाओं को अपने में समाकर स्थान देती आई है, हिंदी को कभी किसी से तकलीफ नहीं हुआ, हिंदी हिंदुस्तान की शान है, हिंदी से हिंदुस्तान है हिंदी देश का मान है हमारे देश का गौरव है अस्मिता है इसे राष्ट्रभाषा के तौर पर बरकरार रखना हम प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है ।

हिंदी को खाद-पानी तो मिला है, किंतु अभी इसे हरा-भरा वृक्ष बनाना बाकी है । अधिकांश क्षेत्रों में हिंदी का उपयोग अत्यंत कम होता है । शासकीय संस्थानों के साथ-साथ निजी संस्थानों में भी यदि संप्रेषण के लिए एवं प्रशिक्षण में हिंदी का उपयोग होने लगे तो निश्चित ही हिंदी की बिंदी चमकने लगेगी । इसके लिए प्रयास जरूरी है हिंदी शब्दकोश बहुत बड़ा है सभी भाषाओं का समावेश ही राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीयता की पहचान है ।