- बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट देता है बच्चों को नए आविष्कार की प्रेरणा ( डॉ संजय गुप्ता)
कोरबा:- इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि इंडस पब्लिक स्कूल दीपिका द्वारा बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट एक्टिविटी का आयोजन रखा गया किसके द्वारा बच्चों के क्रियात्मक तथा रचनात्मक कलाकार विकास करने का प्रयत्न किया गया इस एक्टिविटी में बच्चों को टास्क दिया गया था कि वह अपने घर पर फालतू पड़े हुए वस्तुओं कबाड़ की वस्तुओं अनुपयोगी वस्तुओं वह वस्तु क्यों वेस्ट में पड़ी हुई है ऐसी वस्तुओं को पुनः उपयोग किए जाने योग्य बनाने को कहा गया था इस तरह की गतिविधि से बच्चों में अविष्कार किए जाने का विकास होता है और भविष्य में प्रकृति के पंच तत्वों के माध्यम से वह अपने क्रियात्मक व रचनात्मक कला की मदद से नवीन अविष्कार किये जाने का प्रयत्न करते हैं व एक ना एक दिन कामयाब होते हैं, इस धरती मर हमारे आसपास दिखाई देने वाली हर वस्तु जिन्हें इंसान ने बनाया उसको बनाने के लिये मन मे क्रिएटिविटी क्वालिटी का होना आवश्यक होता है और जो घर के कबाड़ की वस्तुओं से नवीन उपयोगी वस्तु बना दे वह आगे चलकर क्षमता अनुसार नवीन अविष्कार भी कर सकता है, इससे दिमाग की क्रिएटिविटी पावर विकसित होती है चूंकि ज्यादातर लोग वेस्ट वस्तुवों को फेक दिया करते हैं वह कभी उस वस्तु से अन्य नई चीज बनाने के बारे में सोचते भी नहीं पर यहां बच्चों को वेस्ट वस्तुवों से नई चीजें बनाने हेतु जब वह दिल से जुटकर प्रयत्न करने लगते हैं तो निश्चित ही उनके उपयोग की या घर के लिये अन्य उपयोग की वस्तु निर्मित हो जाती है जो एक तरह से पैसों की बचत भी करती व क्रिएटिविटी स्किल भी डेवेलोप होता है, लॉक डाउन के दौरान बच्चे घर पर ही हैं ऐसे में परिवार की विभिन्न जरूरतें हर समय निर्मित होती रहती होगी, पर हर छोटी बड़ी जरूरत के लिये बार बार बाहर जाना उनके जान को खतरे में डाल सकता है क्योकि बाहर कोविद 19 के संक्रमण का खतरा बना हुआ है इसलिय यथासंभव जब तक अत्यंत आवश्यक ना हो लोगों को बाहर आने से बचना है ऐसे में घर पर पड़े हुवे वेस्ट मटेरियल से जुगाड़ बनाकर अगर काम निकलता है तो कितना ही समय व रिस्क लिये जाने से बच जाएंगे उसके साथ साथ पैसों की बचत भी होगी व जुगाड़ लगाकर जीने से हर वस्तु की कीमत व अहमियत पता चलेगा, अक्सर कई बच्चों की आदत पड़ जाती है कि वस्तुवें जरा सी पुरानी होने पर उन्हें नई चाहिए होती है जबकि पुरानी वस्तु खराब भी नहीं हुई होती पर महज पुरानी हो जाने की वजह से वह उन चीजों के उपयोग करने में बोरियत फील करने लग जाते है दरलसल जब तक कोई वस्तु नई होती है तब तक उसकी अहमियत ज्यादा दी जाती है व वस्तुवें पुरानी होने पर उसकी अहमियत भी कम होती जाती है, जबकि कई मर्तबा तो वस्तुवें खराब भी नही हुई होती पर उसे पुरानी होने की वजह से घर के कार्नर में या कबाड़ में रख दिया जाता है, आज के इस गतिविधि के माध्यम से बच्चों के मन में प्रत्येक वस्तुवों के प्रति नवीन सोच विकसित करने हेतु प्रेरित किया गया ताकि वह हर वस्तुवें की कद्र कर सकें हर वस्तुवें कि अहमियत का उन्हें अहसास हो वैसे भी भारत जुगाड़ से काम चलाने के लिये विश्वविख्यात है, तो जुगाड़ू बनना कोई गलत बात नहीं बल्कि गुण है जब हम प्रकृति के पंच तत्वों से बनी वस्तुवों की कद्र करेंगे तो वह भी हमारा साथ देंगे जैसे पेन स्टैंड बनाना, मोबाइल स्टैंड बनाना, बुक स्टैंड बनाना, स्टडी के लिये छोटी छोटी टेबल बनाना, पुराने घड़ी के मशीन से गट्टे की घड़ी बनाना, पुराने कपड़ों से थैले बनाना, फ्यूज एक ई डी बल्ब को पुनः बनाना, फ़ोटो फ्रेम बनाना, रुमाल बनाना इत्यादि आगे डॉक्टर संजय गुप्ता ने बताया कि इस तरह की गतिविधियों से प्रत्येक वस्तुओं के प्रति कदर बढ़ती है और हम सत्य वस्तुओं का सदुपयोग करते हैं और दुरुपयोग करने से बचते हैं किसी से प्रत्येक वस्तुओं के प्रति सकारात्मक भावना बनी रहती है चुंकी जब नकारात्मक भावना वस्तुओं से बनती है तब ही कोई वस्तुओं को खराब होने से पहले ही व्यस्त समझकर एक किनारे कर देता है सब खेल मनुष्य के मन का ही है जब तक मनुष्य के मन को कोई चीजें आती है तब तक वह उससे खेलता है इस्तेमाल करता है और जब उसका मन भर जाता है तो वह उसे किनारे में रख देता है तब वह चीज पुरानी कही जाती है बिगड़ गई हो तो बात अलग है खराब हो गई हो तो बात अलग है मगर बिना खराब हुए बिना बिगड़े किसी वस्तु को किनारे में महज इसलिए रख देना क्योंकि वह चीज पुरानी हो चुकी है यह तो बिल्कुल सही नहीं है और यह आदत अगर अभी नहीं सुधारी गई तो भविष्य में हमारी आवश्यकता है जिस तरह से बढ़ती जाएगी हमारी जरूरत है जिस तरह से बढ़ती जाएंगी हमारे खर्च बढ़ते जाएंगे और वस्तुओं का अंबार हम घर पर लगा कर रखे रहेंगे पर संतुष्ट ताकि अनुभूति नहीं होगी क्योंकि हमारा मन केवल नई चीजों से ही सुख को प्राप्त करने का आदी बन चुका हुआ होगा इसलिए अगर बचपन में ही बच्चों को यह सीख लाया जाए किस सुख बाहर नहीं बल्कि हमारे मन की ही अनुभूति है सुख मटेरियल में नहीं बल्कि हमारे ही मन की अनुभूति है मटेरियल नई हो या पुरानी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता यह हम पर निर्भर करता है कि हम मटेरियल को यह साधनों को उपयोग किस तरह से अपने जीवन को सहज बनाने के लिए करते हैं विज्ञान के इस दौर में जितनी भी वस्तुएं बनाई जा रही है वह मानव जीवन को सहज इस तरह बनाए रखने के लिए तथा काम को सरल तरीके से करने के लिए बनाई जा रही है या आराम प्रदान करने के लिए बनाई जा रही है अब लोग मटेरियल स्टिक हो चुके हैं अर्थात लोगों के मन में ऐसी धारणा बन चुकी है कि सुख मटेरियल से प्राप्त होता है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है वस्तुएं मात्र साधन है जो हमारे जीवन को सरल बनाती है सहज बनाती है आरामदायक बनाती है हमें साधनों पर ज्यादा डिपेंड नहीं होना चाहिए बल्कि जितना ज्यादा हो सके हमें अपने आप को साधनों के प्रति अनासक्त रहना चाहिए क्योंकि साधनों के प्रति आसक्ति हमारी डिपेंडेंसी बढ़ाती जाती है बहरहाल फिर भी घर पर जो पुरानी वस्तुवें है उससे हमें उपयोग हेतु नई वस्तु बनाने की स्किल सीखनी चाहिए जोकि खासकर इस कोविद 19 काल मे अत्यंत ही लाभप्रद होगी
आगे डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि बच्चों के सर्वांगीण विकास का होना समाज के लिए महत्वपूर्ण होता है । इसलिए बच्चों के समाजिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक, और शौक्षणिक विकास के साथ-साथ उनके क्रियात्मक विकास को भी जानना और समझना व साथ साथ उन्हें प्रेरित कर बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है । इस क्षेत्र में बढ़ते शोध और रुचि के परिणामस्वरुप नए सिद्धाँतों और रणनीतियों का निर्माण हुआ है | और इसके साथ ही साथ स्कूली व्यवस्था के द्वारा बच्चे के सर्वांगीण विकास को बढ़ावा देने वाले अभ्यास को विशेष महत्व दिया जाने लगा है । आजकल स्कूलों द्वारा रचनात्मक शिक्षण की रणनीति को अपनाया जाता है । जिसमे विद्यार्थी के पूर्वज्ञान आस्थाओं और कौशल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके माध्यम से विद्यार्थी में नई समझ विकसित होती है। इसी परिपाटी का अनुपालन करते हुए गत दिनों इंडस पब्लिक स्कूल दीपका द्वारा ऑनलाइन माध्यम से बच्चों को गाइड कर घर पर पड़े वेस्ट वस्तुओं से बेस्ट बनाने हेतू प्रेरित किया गया इस तरह से सभी स्तर के बच्चों हेतु उनके क्रियात्मकता एवं रचनात्मकता के विकास के उद्देश्य से विविध प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। इसी क्रम में बड़े बच्चों में भी रचनात्मकता का विकास करने के उद्देश्य से बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट प्रतियोगिता आयोजित की गई । प्रतियोगिता के लिए बच्चों को निर्देशित किया गया कि हमारे आस-पास हमारे घरों में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं | जिनका हम प्रयोग नहीं करते जिन्हें वेस्ट कहा जाता है | इन वस्तुओं को प्रयोग में लाकर हम ऐसी चीजें बना सकते हैं | जो हमारे लिए अनेक प्रकार से उपयोगी होती हैं । जैसे पेन स्टेंड, झूमर, फोटो फे्रम, टेबल स्टेंड इत्यादि । जिन्हें हम अपने घरों में सजावट के रुप में भी उपयोग के अलावा अन्य उपयोग में भी ला सकते हैं | प्रतियोगिता के सभी सफल बच्चों को प्राचार्य द्वारा प्रोत्साहन एवं सम्मान स्वरुप डिजिटल प्रमाण पत्र भेजा गया एवं उनका उत्साह वर्धन किया गया। अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में प्राचार्य श्री संजय गुप्ता ने कहा कि हमारे चारो ओर अनेक वस्तुवें बेकार एवं कबाड़ के रुप में फैले होते हैं। इन मटेरियल को पुनः उपयोग में लाने के गुणों को सीखकर हम अपने आस-पास की स्वच्छता को भी बढ़ाते हैं, तथा बच्चों में नई-नई चीजों के आविष्कार की प्रेरणा को भी जन्म देते हैं । इस तरहसे बच्चों के क्रियात्मक व रचनात्मक कला का विकास होता है व कौशल विकास होने से उसकी दक्षता बढ़ती है प्रत्येक मटेरियल के प्रति कद्र बढ़ती है व ऐसे गतिविधियों से बच्चों का वस्तुवों के प्रति दृश्टिकोण बदलता है और जब दृश्टिकोण बदलता है तो प्रत्येक वस्तुवों को देखकर उनसे अन्य उपयोगी वस्तुवें बनाये जाने का विकल्प मन मे विचार पनपता रहता है जो माइंड को क्रिएटिव बनाता जाता है