• नेशनल गर्ल चाइल्ड डे – जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से ही हो, बेटियाँ भी घर को रौशन करती हैं, हमें बेटे-बेटियों में फर्क ना करते हुवे, दोनों के प्रति समान भाव व सकारात्मक दृश्टिकोण अपनाना चाहिए – डॉ संजय गुप्ता प्राचार्य आई.पी.एस.

नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के अवसर पर लोगों के बीच लड़कियों के अधिकार को लेकर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से और समाज में लड़कियों को नया अवसर मुहैया कराने के मकसद से आईपीएस दीपका में आयोजित हुई ऑनलाइन वेबिनार डॉ संजय गुप्ता प्राचार्य आईपीएस दीपका ने प्रेस विज्ञप्ति जरिकर बतलाया कि इंडस पब्लिक स्कूल दीपका द्वारा ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के अवसर पर लड़कियों के अधिकार व समाज मे लड़कियों के इम्पोर्टेंस को लेकर सोशल अवेयरनेस फैलाने के उद्देश्य से आज ऑनलाइन मंच पर बच्चों तथा उनके परिजनों को शामिल किया गया व लोगों को जागरुक्त करते हुवे बतलाया गया कि भारत में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2008 में इसकी शुरुआत की थी। इसके उद्देश्य की बात करें तो कुल मिलाकर यह लड़कियों को समान अधिकार देने से संबंधित है। लड़कियों को जिन असमानता का सामना करना पड़ता है, उनको दुनिया के सामने लाना और लोगों के बीच बराबरी का अहसास पैदा करना, लड़कियों के अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण समेत कई अहम विषयों पर जागरूकता पैदा करना है। लैंगिक भेदभव बहुत बड़ी समस्या है। लड़कियों को शिक्षा, कानूनी अधिकार और सम्मान जैसे मामले में असमानता का शिकार होना पड़ता है। अक्सर देखा जाता है कि कई घरों में शुरू से ही बेटियों को लेकर लोगों की अलग ही मानसिकता रहती है, कई तो अपने घरों में बेटे ही पाना चाहते है कई मन्नते किया करते हैं, कई सामाजिक बुराई जैसे कि दहेज प्रथा भी बेटियां घर पर ना पैदा होने देने के लिये लोगो को झुकाती रही पर आज 21 वीं सदी में जहां बेटियों ने हर फील्ड में अपना परचम लहराया है फिर चाहे वह पुलिस फ़ौज, डॉक्टर, इंजीनियर हो या अन्य कोई सा भी फील्ड जिन कार्यों को पहले सिर्फ लड़के या मर्द किया करते थे उन हर कार्यों में अब लड़किया बढ़ चढ़कर आगे आई हैं बात करें स्पोर्ट्स की, एयर इंडिया, टीचिंग, प्राइवेट जॉब, रेल, अधिकारी वर्ग, आईपीएस, आई एस, मेडिकल, आर्ट्स, वाणिज्य हर क्षेत्र में बेटियों ने परचम लहराया यहां तक कि साइंटिस्ट जैसे फील्ड में भी बेटियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई इस तरह से जिन लड़कियों को कभी घर की चार दिवारी में कैद कर किचन व घर के काम काज तक सीमित रखा गया था वह आज घर संभालने के साथ साथ जॉब भी करती नजर आ रही है तो यह साबित हो चुका की बेटियां भी बेटों से कम नहीं अब तक बेटियों के प्रति सामाजिक नकारात्मक दृश्टिकोण रखने की वजह से उन्हें घर से बाहर निकलने ही नहीं दिया गया व तय कर दिया गया था कि लड़कियां कोमल होती है वह काम काज बाहर के नहीं बल्कि घर के कार्य संभालने को बनी होती है यह इस समाज द्वारा लड़कियों की लिमिट तय कर दी गई थी व उससे आगे उन्हें बढ़ने ही नहीं दिया नई पीढ़ी में जब बेटियों को घर से बाहर निकलकर पढ़ने की छूट मिलती गई तब यह भी नजर आने लगा कि बेटियां वह हर कार्य करने में सक्षम है जो बेटे कर सकते हैं आज हर रोजगार के फील्ड में बेटियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है बल्कि आज कई ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां केवल महिलाओं को ही काम पर रखा जाता है तो हमे बेटियों के प्रति अपने पूर्व के दृश्टिकोण को बदलने की जरूरत है, उन्हें मौका देने की जरूरत है यह समाज समानता की भावना से आगे बढ़ता है चूंकि आज तक हमने लड़कियों को लड़को से कम समझा आंका इसलिय समाज ने उतनी उन्नति नहीं कि जितनी करनी चाहिए थी, और अब जब बेटियां बेटों की तरह हर कार्य करने लगीं हैं तो समाज कि उन्नति भी होते चले जा रही है, बेटियां आज कई रोल निभा रही होती हैं एक ही वक्त पर बेटियां किसी माता पिता के लिये बेटी का रोल प्ले करती है तो किसी के लिये पत्नी के रूप में किसी के लिये बहन के रूप में किसी के लिये दोस्त के रूप में किसीके लिये मां के रूप में तो कार्यस्थक पर अलग ही किरदार निभा रही होती है इस तरह से सचमुच एक नारी आज समाज मे मल्टी वर्किंग वूमेन की रोल प्ले करती हुई नजर आ जाती है घर पर होम मेकर तो ऑफिस में अलग कार्य, एक समय था जब समाज मे लैंगिक भेदभाव नजर आता है पर लड़कियों ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराकर यह साबित कर दिया है कि वह किसीसे कम नहीं लड़कियों ने खुद ही अपनी अलग पहचान अपनी अलग स्थान समाज मे बनाया है इन्हें हम सभी को और भी आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने चाहिए शिक्षा के अधिकार के तहत बेटियों को उच्च शिक्षा मुहैय्या करवानी चाहिए, उनके शारीरिक विकास हेतु अच्छे पोषण मुहैय्या करवाया जाना चाहिए, लैंगिक असमानता को मिटाते हुवे बेटे बेटियों दोनों को समान भाव से देखना चाहिए, दोनों से एक समान व्यवहार करना चाहिए, उनकी परवरिश यह सोचकर नहीं करना चाहिए कि वह एक दिन पराई हो जाएंगी दहेज के प्रति खुद भी सजग रहने की जरूरत है दहेज एक सामाजिक बुराई है जिसे किसी भी हाल में बढ़ावा नहीं देना चाहिए बल्कि दहेज की जगह बेटियों को उच्च शिक्षा प्रदान करनी चाहिए, इससे दो परिवारों का भला होगा एक जिस घर की बेटी होती है दूसरा जिस घर में उसे जाना होता है, बालिका विवाह पर तो सरकार ने रोक लगा ही दी है पर खुद भी इतने परिपक्व होना चाहिए कि बेटियों को उच्च शिक्षा प्रदान कर ही उनकी शादी करवानी चाहिए ताकि जीवन के किसी मोड़ पर अकेले पड़ने पर की हुई पढ़ाई की बदौलत अपने पैरों पर खड़े हो सके, बेटियों हेतु मिलने वाली सरकारी स्कॉलरशिप या अन्य योजनाओं से उन्हें लाभान्वित करवाना चाहिए, बालिकाओं को उनके मूलभूत अधिकारों से उन्हें वाक़िफ़ करवाना चाहिए, सबसे पहले माता पिता ही अपने बेटियों के प्रति सकारात्मक दृश्टिकोण रखें परिवर्तन की शुरुवात स्वयं से व खुद के घर से ही होती है जैसा व्यवहार हम अपनी बेटियों से करेंगे हमें देख अन्य भी हमारी तथा अपनी बेटियों से वैसा व्यवहार करेंगे, हर छोटी से छोटी चीज में हमे उन्हें बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि बच्चे कोशने से नहीं बल्कि बढ़ावा देने से कुछ करके बतलाते हैं

आगे आईपीएस दीपका के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता ने जारी प्रेस रिलीज में जिक्र किया है कि इंडस पब्लिक स्कूल वैसे तो प्रत्येक वर्ष स्पेशल डे पर सम्बन्धित टॉपिक पर परिचर्चा करते रहा है इससे बच्चों के सामान्य ज्ञान में इजाफा होता है साथ ही किताबी ज्ञान के अलावा व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त होता है सांसारिक ज्ञान भी प्राप्त होता है उसी तारतम्य में आज लड़कियों के अधिकारों व उनके प्रति समानता सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने हेतु सोशल अवेयरनेस के मकसद से ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन रखा गया था जिसमे बच्चों के साथ साथ उनके परिजनों ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया इस तरह से आज का कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ