- पशु कल्याण दिवस पर आईपीएस दीपका के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने सांझा किये अपने विचार
विश्व पशु कल्याण दिवस के अवसर पर इंडस पब्लिक स्कूल दीपका द्वारा पशुओं के प्रति सकारात्मक दृश्टिकोण अपनाने व सकारात्मक व्यवहार किये जाने की अपील करते हुवे सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से समाज को संबोधित करते हुवे प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता ने कहा कि विश्व पशु कल्याण दिवस एक अन्तराष्ट्रीय दिवस है। जो कि प्रतिवर्ष 4 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस का मूल उद्देश्य विलुप्त हुए प्राणियों की रक्षा करना और मानव से उनके संबंधो को मजबूत करना था। साथ ही पशुओ के कल्याण के सन्दर्भ विश्व पशु कल्याण दिवस का आयोजन करना था। विश्व पशु कल्याण दिवस का उद्देश्य पशु कल्याण मानकों में सुधार करना, और व्यक्तियों,समूह, और संगठनों का समर्थन प्राप्त करना और जानवरों के प्रति प्यार प्रकट करना ताकि उनका जीवन सक्षम और बेहतर हो सके। इस कारण से यह दिवस “पशु प्रेमी दिवस” के रूप में जाना जाता है। यद्यपि यह एक बेहतरीन दिवस विश्व भर के लोगो का जानवरों के प्रति प्यार प्रकट करने का महत्वपूर्ण दिवस है, लेकिन इस दिवस के उजागर होने के पीछे भी कई कारण जिम्मेदार हैं। इन सभी तथ्यों में जानवरों के प्रति प्रकट किये जाने वाले घृणास्पद व्यवहार, आवारा कुत्तों और बिल्ल्लियों के प्रति व्यवहार, उनका अमानवीय व्यापार आदि भी प्रमुख कारण थे। इसके अलावा किसी प्राकृतिक आपदा के समय भी इन जानवरों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था और उनकी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरती जाती रही है। पशु कल्याण के लिए अनेकों कानूनों और अधिनियमों की भी व्यवस्था की गयी है. जैसे- “पशु क्रूरता अधिनियम 1835” जोकि विश्व में जानवरों के सन्दर्भ में प्रथम अधिनियम है। जिसकी स्थापना ब्रिटेन में की गयी थी। इसके पश्चात “पशु संरक्षण अधिनियम 1911” प्रकाश में आया। जिसके परिणामस्वरूप जानवरों की रक्षा के लिए “पशु कल्याण अधिनियम, 1966″ नामक अमेरिकी राष्ट्रीय क़ानून प्रकाश में आया. भारत में, पशुओं की सुरक्षा के लिए “जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम 1966” को लाया गया। भारत आरम्भ से ही पशुओं के प्रति प्रेम भाव रखता रहा है। भारतीय संस्कृति में गाय को माता समझकर पूजा जाता रहा है वहीं स्वान को भैरव का रूप माना गया है। पशु, पक्षी प्रकृति का ही हिस्सा है। कुदरत में इस दुनियां को जीने योग्य बनाने के लिये जिस तरह पेड़ पौधे बनाये उसी तरह इसको पशु पक्षीयों से भी सजाया गया भारतीय संस्कृति में जहां चूहा श्री गणेश की सवारी है वही मोर माता सरस्वती की सवारी के रूप में दिखाया गया है वहीं माता दुर्गा की सवारी सेर के रूप में दिखलाया गया है। भारतीय संस्कृति में अहिंसा परमोधर्म है। जो कि सनातन संस्कृति का रंग है। यहां हिंसा को जायज नहीं ठहराया गया है चाहे वह फिर व्यक्ति से हो प्रकृति से हो या फिर पशु पक्षी से यह पश्चार्य सभ्यता की वजह से यहां के लोग भी नॉनवेज खाने लगे अन्यथा भारत देव भूमि है। जिसमे सतयुग, त्रेतायुग में देवी देवताओं का राज्य हुवा करता था धीरे धीरे विश्व का विस्तार हुवा व अन्य देश अस्तित्व में आये सबके अलग अलग संस्कार मत मतांतर लोग पशुवों को मारकर भोजन के रूप में खाना शुरू कर दिए, जबकि भारत सात्विक अन्न के लिये जाना जाता था उसी भारत मे आज पाश्चात्य सभ्यता का रंग चढ़ने से लोग पशु पक्षी को शिकार कर खाने लगे। और मांस खाने से मनुस्य की मानसिक प्रवित्ति भी और ही हिंसक होती चली गई। नतीजतन आज मन ही हिंसक प्रवित्ति का होने के कारण एक ही घर मे भाई भाई की आपस मे नहीं बनती व झगड़ पड़ते हैं लोग छोटी छोटी बातों में गुस्सा हो जाते हैं। हिन्दू धर्म मे खासकर गायों को कितने उच्च स्थान दिया गया है भगवान शिव के साथ नंदी अर्थात बैल को दिखलाया गया है जितने भी ऋषि मुनि होते हैं सन्यासी होते हैं वह प्रकृति प्रेमी ही होते हैं प्रकृति की गोद मे जंगलों में बिना जीव हत्या किए बिना मांस खाये सात्विक अन्न के साथ जीवन यापन करते आज भी नजर आ जाते हैं। पर भारत के रहवासियों पर आज पश्चात सभ्यता का रंग चढ़ने से लोग मांस खाना फैशन समझते हैं पार्टियों में ही कितने ही जीवों को मारकर उनके मांस का सेवन कर लिया जाता है तो बकरे व मुर्गे को पाला ही कटने के लिये जाता है। आज लोगों की मानसिकता इतनी नकारात्मक हो चुकी है कि सही गलत जानते हुवे भी लोग गलत रास्ते की ओर आकर्षित होता है जब खुद को चोट लगती है तो लोग हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट जाते हैं। पर जब वही पशु पक्षी को मांस खाने के लिये हत्या की जाती है तो लोगों को सही लगता है क्योकि तब स्वयं के पेट भरने की बात होती है। जैसे सभी जीवों को इस धरा पर जीने का अधिकार है उसी तरह उन जीवों को भी जिनका शिकार कर मांस सेवन किया जाता है, परमात्मा ने इंसानों को निर्णय करने की बुद्धि दी है कि क्या सही क्या गलत तभी वह जानवर से भिन्न होता है पर आज लोग अपने विवेक का सदुपयोग करने के बजाए दुरुपयोग करने लगे हैं। प्रकृति के साज सज्जा व संतुलन में योगदान प्रदान करने वाले जीवों को मारने से प्रकृति का जैव तंत्र इंबैलेंस हो चुका है। आज कई जीव विलुप्ति के कगार पर हैं। चाहे वह हांथी हो , शेर हो, हिरन हो या अन्य प्रायः सभी जीवों का धलल्ले से शिकार होता रहा व जब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गए तब उन्हें बचाने के लिये चिड़ियाघर या अन्य तरह के रास्ते अपनाए जा रहे हैं पर वहां कैद होकर वह जीव प्रकृति के संतुलन में भागीदारी कैसे करेंगे। हर तरफ से इस प्रकृति को मानव ने नुकसान पहुंचाया है। जिनमे से पशुवों की हत्या भी एक वजह है। क्योकि पशु पक्षी भी इसी प्रकृति का ही हिस्सा हैं। जबकभी हमें कोई सांप दिखता है तो हमे उसे मारने के बजाए स्नैक कैचर को बुलाकर उस सांप को पकड़वाकर कहीं दूर जंगल मे छोड़ आना चाहिए, इस तरह की रहम की भावना व प्रकृति प्रेम होगी तब ही पशु पक्षी इस धरा पर जीवित रह पाएंगे। आज इंसान बेवजह सड़क के कुत्ते को मारता है जो यह सिद्ध करता है कि मनुस्य का मन हिंसक हो चला है जो बेवजह किस पशु को मारना भी अनुचित नहीं समझता, हमे समय समय पर पशुवों की रक्षा के लिए सेमिनार आयोजित कर जागरूकता बिखेरनी चाहिए। आज लोग गाये तो पाल लेते हैं। पर यूँही उसे सड़क पर छोड़ देते हैं। जिससे आएदिन एक्सीडेंट होता रहता है। अतः अगर पशु पाल रहे हैं। तो उसकी जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए। लोग अत्याधिक दूध प्राप्त करने के लिये गायों व भैसों को ऑक्सटॉसिन इंजेक्शन देते हैं। जिससे उन पशुवों के हड्डियों का क्षरण होकर दूध मोटा गाढ़ा नजर आता है व पशु जल्द ही कमजोर हो जाता है उसकी हड्डियां कमजोर हो जाती है आशु जल्द ही बूढा हो जाता है तो प्रशाषन को मेडिकल स्टोर वालों को ऑक्सिटोसिन इम्जेक्शन के अवैध इस्तेमाल पर कमर कसनी चाहिए जिससे पशुवों को सुरक्षा होगी व जल्द मृत्यु नहीं होगी
आगे आईपीएस के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता ने बतलाया कि आईपीएस के बच्चों के जहन में पशुवों के प्रति प्रेम भाव उत्तपन्न करने सकारात्मक दृश्टिकोण अपनाने, पशुवों के प्रति सकारात्मक व्यवहार किये जाने हेतु प्रेरित करने के लिये आज विश्व पशु कल्याण दिवस के अवसर आईपीएस के शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन माध्यम से बच्चों पशुवों की पेंटिंग करने को कहा गया जिससे बच्चों ने अपने अपने दिलचस्पी के अनुसार विभिन्न पशुवों की पेंटिंग कर शिक्षकों को ऑनलाइन भेजी ज्ञात हो कि आईपीएस दीपका लॉक डाउन के दौरान भी शिक्षा व्यवस्था को ऑनलाइन माध्यम से बदस्तूर जारी रखे हुवे है। जिसमे स्पेशल डे के अवसर पर सामाजिक गतिविधियां भी ऑनलाइन संचालित की जाती हैं आज पशु कल्याण दिवस के मद्देनजर सबमें पशुवों के प्रति प्रेम, रहम भाव जागृत करने व दृश्टिकोण व व्यवहार पशुवों ओ प्रति सकारात्मक रखने हेतु शिक्षित करने के उद्देश्य से ऑनलाइन माध्यम से बच्चों से जुड़कर शिक्षा दी गई, शिक्षा का अर्थ केवल डिग्रियां हांसिल करना नहीं बल्कि, बच्चों में पॉजिटिव संस्कार प्रवाहित कर उन्हें सच्चा व अच्छा इंसान बनाना होता है।