- वर्ल्ड साइंस डे – जीवन विज्ञान के प्रयोग जैसा है । जितनी बार प्रयोग करोगे पहले से बाहर सफलता पाओगे । डॉ. संजय गुप्ता आई.पी.एस. दीपका
- आईपीएस दीपका में अंतरराष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर आयोजित हुई ऑनलाइन कार्यशाला
आईपीएस दीपका के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता से हुई परिचर्चा में उन्होंने बतलाया कि आज 10 नवंबर अंतररास्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है । जिसका मूल उद्देश्य लोगों की वैज्ञानिक दृश्टिकोण प्रदान करना है । आज हमारे दैनिक जीवन मे विज्ञान की महत्ता के संदर्भ में लोगों को जगरुक्त करना है। हमारे आसपास जो कुछ भी घटनाएं घट रही है उसके पीछे का वैज्ञानिक दृश्टिकोण के हिसाब से वजह क्या है यह समझना जरूरी है। प्रत्येक वर्ष 10 नवम्बर को दुनिया के कई देशों में शांति और विकास के लिए ‘विश्व विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है। इसके तहत शांति एवं विकास कार्यों में विज्ञान के योगदान के बारे में बताया जाता है। उदाहरण के लिए अगर हम गौर फरमाएं चाइना पर तो चाइना में लोगों को स्कूल के वक़्त से ही टेक्नोलॉजी के मामले में ज्ञान अर्जित करवाया जाता है। उन्हें प्रैक्टिकल नॉलेज मुहैय्या करवाई जाती है । अगर अमेरिका कोई शोध करके कोई वस्तु बनाता है। तो चाइना बिना शोध किये उस वस्तु की हूबहू नई वस्तु अपने यहां बना लेता है । इससे शोध का खर्च बच जाता है। ऐसा इसलिय क्योकि चाइना के लोग प्रोडक्टिव हैं । जहां टेक्नोलॉजी के मामले में हम भारतवासी पिछड़े हुवे हैं । वहीं अगर गौर फरमाएं तो टेक्नोलॉजी के मामले में चाइना कितना आगे बढ़ चुका है । वहां बच्चा बच्चा टेक्नोलोजी में कौषलताएँ हांसिल किये होता है। आज भारत मे स्किल डेवलपमेंट के विषय पर काम चल रहा है । यह चाइना में ऑलरेडी हो चुका है वहां के बच्चे पढ़ाई के साथ साथ स्किल डेवलपमेंट पर भी फोकस कर आज टेक्नोलॉजी की नई नई वस्तुवें बना रहे हैं। शांति पूर्ण जीवन जीने के लिये व जीवन को सरल व सहज बनाने के लिए । हमें विज्ञान का सहयोग आवस्यक है। एक ओर साइंस व एक ओर साइलेंट (शांति) जब इन दोनों का जीवन मे समन्वय कर बैलेंस बनाया जाता है तो जीवन आसान बन जाता है। साइंस पर अत्याधिक डिपेंडेंसी हमें नकारा भी बना सकता है । इसलिय जीवन मे बैलेंस का होना आवस्यक है। साइंस के साधनों का उपयोग करना अच्छी बात है । पर वहीं आज की पीढ़ी साइंस के साधनों का दुरुपयोग अत्यधिक करती नजर आ रही है। जब तक हम वस्तुवों को चलाएं तब तक ठीक पर जब वस्तु के पीछे भागते हुवे उस पर निर्भर होने लगते हैं अर्थात वस्तुवें हमारे मन को चलाने लगती हैं । तब विपत्ति बन जाती हैं । इसे ही निर्भरता कहते हैं । और यह कंडीशन दुखदाई होती है। दुखदाई इसलिय क्योकि किसी चीज पर निर्भरता हमें कमजोर बनाती है इसलिय जीवन मे हर चीजों का बैलेंस होना अत्यंत ही आवस्यक है । जिस तरह साइंस एक शक्ति है उसी तरह साइलेंट भी एक शक्ति है । शांति में रहकर ही इन्वेंशन होती है। इसलिए जब साइंस व साइलेंट का तालमेल हो तब अच्छी खोज हो सकती है । व इन्वेंशन जीवन को सहज व सरल बनाता है इन्वेंशन के लिए क्रिएटिव माइंड का होना आवस्यक है व माइंड के क्रिएटिव होने के लिए साइलेंट का होना आवस्यक है। क्योंकि स्थिर व शान्त मन मे क्रिएटिव आइडियाज आते हैं वहीं चंचल मन इन्वेंशन नहीं तबाही करवाते हैं । हमारे किसी भी चीज को वैज्ञानिक दृश्टिकोण से देखना चाहिए इससे तर्क क्षमता बढ़ती है । अगर कोई हमें कोई चीज समझा रहा है या बतला रहा है । तो हमें अपने वैज्ञानिक दृश्टिकोण का उपयोग करते हुवे मन ही मन तर्क करना चाहिए कि सामने वाला जो चीजे कह रहा है क्या वह साइंटिफिकली सहीं है उसके पीछे कोई तर्क है अगर सहीं लगे तब ही एक्सेप्ट करना चाहिए । यूँही नहीं मानकर उसे अमल कर लेना चाहिए अगर हम बिना तर्क किये चीजों को एक्सेप्ट करने लगेंगे तो धोखा ही खाएंगे इसका मतलब हम अपने विवेक अपनी बुध्धि का उपयोग यथार्थ रीति नहीं कर रहे । कुदरत ने प्रत्येक मनुस्य को विवेक दिया है जिससे कि वह तर्क कर सहीं गलत का आंकलन कर सके । मगर अगर हम बिना अपने विवेक का इस्तेमाल किये बिना अपने निर्णय शक्ति व समझ शक्ति का उपयोग किये चीजों को एक्सेप्ट करने लगते हैं तब यह प्रॉब्लम क्रिएट करती है । आज मनुस्य विज्ञान की मदद से चांद तक पहुंच गया । नित नए अविष्कार कर मनुस्य विकास के शिखर पर पहुंच रहा है । पर एक गलती यह कि विज्ञान का अहंकार मनुस्य के विवेक को खोखला करता जा रहा है । शक्तियां होना अच्छी बात है पर शक्तियां अगर नकारात्मक रास्ते में लगाई जाए तो तबाही ही लाती हैं । जैसे कि आज मोबाइल व टीवी को ही देख ले जिस तरह इनका दुरुपयोग हो रहा है उससे मानव मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । मन मे इन्फॉर्मेशन का अंबार हो जाने से मन अपने तय लक्ष्य से भटक कर लक्ष्यहीन बनता है रहा है व लक्ष्यहीन व्यक्ति का समय व जीवन दोनों ही बर्बाद होता चला जा रहा है क्योकि लक्ष्य नाहोने से वह अपनी ऊर्जा नकारात्मक कार्यों में कर रहा है जिससे विकास की जगह पतन होता जा रहा है । इसलिए आज परिजनों को भी चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करें कि जब वह अपने बच्चे को साइंस की किसी वस्तु का उपयोग करने के लिये उसे दे रहे हैं तो यह सुनिश्चित करें कि बच्चा उसका सदुपयोग ही करें दुरुपयोग नहीं क्योकि सदुपयोग करने से जितना उसको लाभ होगा वहीं दुरुपयोग करने से उतना ही उसको हानि होगी इस तरह बच्चों को तीन चीजे समझाई गईं पहला तो विज्ञान के साधनों का सदुपयोग दूसरा वैज्ञानिक दृश्टिकोण और तीसरा है प्रैक्टिस हमारे आसपास विज्ञान की देन जी वस्तु पड़ी हुई है उसके बारे में सोचें कि यह वस्तु कार्य कैसे करती है । उसकी जानकारी इंटनेट से अन्य किसी माध्यम से हांसिल करें यह ना सोचें कि अभी आपकी उम्र उतनी बड़ी नहीं कि आप इन्वेंशन नहीं कर सकते । इन्वेंशन की शुरुवात क्रिएटिव माइंड से होती है । और क्रिएटिव माइंड के लिये माइंड में पीजिटिव डायरेक्शन में सोचने की आदत भी जरूरी है । जब हम हमारे आसपास की वस्तुवों के बारे में यह सोचना आरम्भ करेंगे कि यह काम कैसे कर रही है तो इस उत्सुकता में हम उस वस्तु के विभिन्न पार्ट्स के संदर्भ में जानेंगे फिर धीरे धीरे हमें उन सवालों के जवाब मिलते जाएंगे जब हम खुद उस वस्तु मो खोलकर उसे वापस उसी तरह फिट कर लेंगे इससे हमारे अंदर आत्मविस्वास बढ़ेगा व भय मिटेगा तब हमारे सोचने के तरीके बदलेंगे तब हमें जब कोई नई वस्तु मिलेगी तब हम उससे खेलने से ज्यादा वह काम कैसे करता है यह जानने के इक्षुक होंगे जो हमारे माइंड को क्रिएटिव बनाएगी व हम प्रोडक्टिव बनेंगे जैसे चाइना के बच्चे बच्चे टेक्नोलॉजी को इतना प्रैक्टिस किये हैं । कि वह उनके जीवन शैली का हिस्सा बन गया । अब हमें भी हमारे स्किल्स को डेवेलोप करना है । व साइंस की वस्तुवों की क्रियाप्रणाली को जानने की आदत डालनी है । ज्ञात हो कि ज्ञान समुद्र के समान है जो कभी भी खत्म नहीं होता हमें अपने आपको ताउम्र सीखने की आदत डालनी चाहिए क्योंकि जब हम यह सोचने लगे जाते हैं । कि हमें सबकुछ आता है । तो हम अपने माइंड को नया सीखने के लिये ब्लॉक कर देते हैं । इसलिए व्यवहार ऐसा रखें कि हां हमें और सीखना है इससे आप वह जानकारियां अपने माइंड में डालने में सक्षम होंगे जो जानकारी आपके माइंड में नहीं है।
आगे डॉक्टर संजय गुप्ता प्राचार्य आईपीएस दीपका ने बतलाया कि वैसे तो आईपीएस दीपका में स्किल डेवलपमेंट हेतू अलग से व्यवस्था करवाई गई गया । साथ ही बच्चों को समय समय पर आसपास के लघु व कुटीर उद्योग के संदर्भ में जानकारी मुहैया करवाई जाती रही है साथ ही इंडस्ट्रियल विजिट का अलग से कार्यक्रम रखा जाता है । जिससे कि बच्चे के स्किल को डेवेलोप किया जा सके । आगे नई शिक्षा प्रणाली के तहत बच्चे अब छठवीं कक्षा से ही इंटर्नशिप के माध्यम से स्किल डेवेलोप कर सकेंगे जो कि अत्यंत ही हर्ष की बात है । क्योकि कई मर्तबा आर्थिक स्थिति या अन्य किसी वजह से जब कोई शिक्षा को अधूरा छोडकर पूर्ण शिक्षा से वंचित हो जाता था ऐसी स्थिति में वह रोजगार हेतु कुशलता से वंचित रह जाता था पर अब नवीन शिक्षा प्रणाली के अनुसार बच्चा छठवीं कक्षा से ही कौशल विकास हेतु इंटर्नशिप कर स्किल डेवेलोप कर सकता है जो बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाएगी व किसी स्थिति में अगर कोई बच्चा उच्च स्तरीय पढ़ाई से वंचित रह जाता है तब भी उसमें वह हुनर होगा जिससे वह अपना जीवन यापन कर सके आमदनी कर सके तो हमें सीखने की आदत डालनी चाहिए जो हमारे ज्ञान के स्तर को बढ़ाने में मदद करती है।