कोरबा:- आई.पी.एस. के प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता नें प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बतलाया कि आज नेशनल वाइल्डलाइफ डे (National Wildlife Day) के अवसर पर आईपीएस दीपका द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण से सम्बंधित जागरूकता बिखेरने हेतु ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन रखा गया था जिसमें आईपीएस के बच्चों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया वाह वन्य प्राणियों के संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल की ज्ञात हो कि प्रत्येक वर्ष विश्व वन्यजीव दिवस आईपीएस दीपका द्वारा मनाया जाता रहा है व हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी जागरूकता बिखेरने हेतु लॉक डाउन के मद्देनजर सोशल अवेयरनेस प्रोग्राम ऑनलाइन मंच पर आयोजित किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य वन्य प्राणियों के प्रति सद्भभावना व रहम की भावना रखते हुवे उनके संरक्षण हेतु अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का अहसास दिलाना था आज के वेबिनार के माध्यम से बच्चों ने जाना कि वन्यजीव दिवस के अवसर पर इस वर्ष 2020 में जलीय जीवों की प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस वर्ष वन्यजीव दिवस की थीम है: “जल के नीचे जीवन: लोगों तथा पृथ्वी के लिए ( Life below Water: For People and Planet)” इस वर्ष के वन्यजीव दिवस का सीधा संबंध संयुक्त राष्ट्रों द्वारा प्रतिपादित 14 वें सतत विकास लक्ष्य है, जिसके अंतर्गत “जलीय जीवन” पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

आज के ऑनलाइन वेबिनार में बच्चों ने जाना कि विश्व वन्यजीव दिवस क्यों मनाया जाता है? – समस्त विश्व जीव-जंतु तथा पेड़- पौधों की विभिन्न प्रजातियों से भरा हुआ है। सभी प्रजातियों के जीव, जंतु, पेड़, पौधे तथा पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व के लिए अपने-अपने तरीकों से महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वन्यजीव मानव अस्तित्व के समय से ही धरती पर उपस्थित हैं, तथा एक- दूसरे के जीवन का अभिन्न अंग भी बन चुके हैं। वन्यजीवों से हमे भोजन तथा औषधियों के अलावा भी अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे कि वन्यजीव जलवायु को संतुलित रखने में सहायता करते हैं। ये वर्षा को नियमित रखने तथा प्राकृतिक संसाधनों की पुनःप्राप्ति में सहयोग करते हैं। पर्यावरण में जीव-जंतु तथा पेड़-पौधों के योगदान को पहचानकर तथा धरती पर जीवन के लिए वन्यजीवों के अस्तित्व को अनिवार्य स्वीकार करते हुए, 3 मार्च, 1973 में यूनाइटेड नेशन्स द्वारा साइट्स (CITES: Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) की स्थापना की। जिसका उद्देश्य पृथ्वी के वन्यजीवों का रक्षण कर उन्हें संरक्षित करना था। तीव्रता से बढ़ रहे औद्योगिकीकरण व शहरीकरण के परिणाम स्वरूप दिन प्रतिदिन जंगलों की कटाई निरंतर होती रही, जिससे वन्य प्राणियों हेतु रहने योग्य अनुकूल वातावरण उपलब्ध नहीं हो पा रहा, नतीजतन वन्य प्राणी जंगलों से शहरों या ग्रामों में प्रवेश करने लग जाते व शहरों को वन्य प्राणियों से संरक्षित करने हेतु वन्य प्राणियों को लगातार नुकसान पहुंचाया जाता रहा और इस तरह धीरे-धीरे जंगलों की कटाई करते हुवे शहरीकरण बढ़ता गया और नित जंगलों के क्षेत्रफल में कमी आती गई तो वन्य जीवो द्वारा अपने लिए आहार से संबंधित जरूरतों की पूर्ति हेतु बाहर रुख करना पड़ा जोकि एक तरह से शहरी घुसपैठ माना गया दरअसल वन्य प्राणियों ने शहरों में घुसपैठ नहीं किया बल्कि हम मनुष्य ने अपनी जरूरतों को विस्तार करते हुए उनके घर अर्थात जंगलों की कटाई कर वहां पहले कस्बे फिर गांव बसाए फिर धीरे धीरे शहर बसाए और इस तरह से वन्य जीवों को उनके ही घरों से बेघर कर दिया और जब वे बेघर होने के पश्चात विचरण करते हुवे अपने पुराने घर के स्थान अर्थात जहां अब हमारा घर बन चुका इसके आस-पास गांवों या शहरों के आसपास पुनः दिखाई दिए तब हम मनुस्यों नें उन्हें घुसपैठ समझकर अपने मन के भय वश उनपर वार किया और इस कदर लगातार वार किया की संपूर्ण विश्व से वन्य प्राणियों की निरंतर कमी होती गई वन्य प्राणियों का होना प्रकृति के संतुलन को बनाए रखता है अगर बात करें प्रकृति के संतुलन की तो एक छोटी सी चींटी से लेकर विशालकाय हाथी या सरल चित्त गाय हो या डरावने शेर सभी अपने प्रकृति के संतुलन रखने हेतु जीवन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं किसी एक जीव की सहभागिता को नकारा नहीं जा सकता सभी अपने अपने स्तर पर अपने जीवन शैली को कायम रखते हैं वह किसी न किसी स्तर पर छोटे या बड़े रूप में प्रकृति के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं परंतु हम मनुस्यों नें अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पहला तो जंगलों की कटाई करते गए, अपने विभिन्न तरह के शौक को पूर्ण करने हेतु वन्य जीवों का शिकार कर जीवघात करते गए, प्रकृति में हमारे लिये अनाज होते हुवे भी वन्य जीवों को मारकर खाते रहे, आज ही हर गौर फरमाएं तो नजर आएगा कि हर दुकानों में राशन सामग्री उपलब्ध होने के बावजूद भी मनुस्य कई तरह के जीवों को अपने भोजन का हिस्सा बनाता रहता है ना केवल भारतीय स्तर पर बल्कि पूरे विश्व स्तर पर अगर बात करें चाइना की ही तो सबसे बड़ा मांस का मार्केट चाइना में है जहां सभी प्रकार के वन्य जीवों का मांस ना केवल चाइना वासियों द्वारा खाया जाता है बल्कि अन्य कई देशों में एक्सपोर्ट कर बड़े स्तर पर बिजनेस किया जाता है तो यह तो केवल एक उदाहरण है अगर सचमुच हमें वन्य जीवों का संरक्षण करना है तो प्रकृति में उपलब्ध अनाज से अपना जीवन यापन करना चाहिए, मनुस्य कभी हांथी दांत के लिये हांथीयों को मारता तो कभी कस्तूरी के लिये मृग को मारता तो चमड़े के जरूरत पूरा करने को अनेकों जीवों की हत्या होती रहती इस तरह मनुस्य की अनेकों जरूरतों को पूरा करने के लिये वन्य जीवों को मारता गया और आज जब जीवों की संख्या विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई व प्रतिकूल प्रभाव वातावरण पर दिखाई देने लगे तो लोग वन्य अभ्यारण्य शुरू किए छोटे छोटे चिड़ियाघर बनाकर जीवों को संरक्षित रखने हेतु आगे आये पर सचमुच अगर प्रकृति को संतुलित करना है तो जितने पेड़ कटे उतने पेड़ लगाने की जरूरत है जितने जीव मारे गए उतने जीवो को पुनः संरक्षित किये जाने की अवश्यकता है जिसके लिए सामाजिक जागरूकता ही एकमात्र उपाय नजर आ रहा है इस तरह के आयोजन के माध्यम से सामाजिक जागरूकता बिखेरकर प्रत्येक को वन्य प्राणियों के संरक्षण में सामाजिक योगदान प्रदान करने हेतु जागरूकता बिखरने की आवस्यकता है जिसके लिए ही आज का यह आयोजन रखा गया था

आगे इंडस पब्लिक स्कूल के प्राचार्य डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि इस तरह के आयोजन इंडस पब्लिक स्कूल द्वारा प्रतिवर्ष विद्यालय में आयोजित किया जाता रहा है पर इस वर्ष लॉक डाउन के मद्देनजर भी ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किया गया व बच्चों को भी वन्य जीवों के संरक्षण में अपने स्तर पर सामाजिक योगदान करने हेतु जागरूक किया गया, वन्य प्राणियों का इंबैलेंस होने से परिस्थितिक तंत्र में असन्तुलन होने से प्रकृति असंतुलित हो चुकी और जिस वजह से आज कहीं समय पर वर्षा नहीं हो रही तो कहीं अत्याधिक वर्षा, कहीं बाढ़ जैसी परिस्थिति बन जा रही, कहीं सूखा पड़ रहा, यह सब मानव के ही वृहद स्तर पर प्रकृति को विभिन्न तरह से पहुंचाए जाने वाले नुकसान का ही दुष्परिणाम है जो प्रकृति अब प्रतिक्रिया स्वरूप रिटर्न फल प्रदान कर रही है, हमने जो प्रकृति को दिया प्रकृति उसी का रिटर्न कर रही है, तब हम मानव पूछते हैं कि यह जानवर हमारे शहरों में प्रवेश क्यों कर रहे हमारे गांव में प्रवेश क्यों कर रहे हैं दरअसल सत्य तो यह है कि वह हमारे गांव व शहरों में प्रवेश नहीं कर रहे हैं घुसपैठ नहीं कर रहे हैं बल्कि हमने उनके घरों को उजाड़कर उनके जंगलों को काटकर उन्हें बेघर कर दिया और अपने आप को जीवित रखने हेतु जब वही वन्य जीव आहार की पूर्ति हेतु वनो में पेड़ उपलब्ध ना होने पर बाहर की ओर रुख किये तो उन्हें नुकसान पहुंचाया गया, अब हम मानवों को प्रकृति के संतुलन करने हेतु वन्य जीवों के संरक्षण प्रदान करने की अत्यंत ही आवस्यकता है जिसके लिये बेफिजूल वनों की कटाई पर रोक, वन जीवों के संरक्षण हेतु संवैधानिक नियमों का दृणता से पालन करने के साथ साथ वेजिटेरिअन जीवन शैली को बढ़ावा देना चाहिए, लावारिस पशुओं को वन तक पहुंचाने में प्रशासन की मदद लेकर सामाजिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए उनकी हत्या नहीं करनी चाहिए बल्कि उनको पुनः वन तक पहुंचाने के उपाय तरसाने चाहिए