नई दिल्ली:- उत्तराखंड सरकार ने सोमवार को आयुर्वेदिक डॉक्टरों को आपात स्थिति में एलौपैथिक दवाएं लिखने की अनुमति दे दी. इस बीच एलोपैथिक प्रैक्टिशनर्स की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल काउंसिल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए राज्य सरकार के फैसले को “गैर कानूनी” करार दिया है. राज्य सरकार के फैसले की तारीफ करते उत्तराखंड के आयुष मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा, “मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने लंबे समय से चली आ रही आयुर्वेदिक डॉक्टरों की मांग को मंजूरी दे दी है.”

आयुष मंत्री ने कहा, “आयुर्वेदिक डॉक्टर्स लंबे समय से यह मांग कर रहे थे कि हिमाचल प्रदेश के अपने समकक्षों की तरह उन्हें भी एलौपैथिक दवाएं लिखने की मंजूरी दी जाए.” मंत्री ने दावा किया कि राज्य सरकार के फैसले के बाद स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा असर दिखेगा.

उन्होंने कहा, “हमने आयुर्वेदिक डॉक्टरों की मांग को स्वीकार कर लिया है कि आपात स्थिति में वे एलौपैथिक दवाएं भी लिख सकते हैं. हमें उम्मीद है कि इस फैसले से राज्य के दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोगों को काफी मदद मिलेगी, क्योंकि इन इलाकों में एलोपैथिक डॉक्टरों की बेहद कमी है.” दिलचस्प है कि उत्तराखंड सरकार का ये फैसला उस समय आया है, जब देश में एलौपैथिक और आयुर्वेदिक दवाओं की श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ी हुई है.

हालांकि इंडियन मेडिकल काउंसिल (आईएमए) को राज्य सरकार का फैसला पसंद नहीं आया है. आईएमए उत्तराखंड के प्रेसिडेंट डॉक्टर अरविंद शर्मा ने कहा कि ये फैसला अपने आप में विरोधाभासी है. अगर आयुर्वेदिक डॉक्टर भी एलौपैथिक दवाएं लिखेंगे तो एलौपैथिक पर सवाल क्यों उठाए जा रहे थे. आईएमए उत्तराखंड के जनरल सेक्रेटरी डॉक्टर अजय खन्ना ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार कानूनों को लेकर जागरूक नहीं है.” उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का फैसला पूरी तरह गैरकानूनी है.

एलौपैथिक और आयुर्वेद के बीच श्रेष्ठता की जंग उस समय शुरू हुई जब योग गुरु रामदेव ने एक कथित वीडियो में पश्चिमी चिकित्सा पद्धति पर सवाल उठाया. रामदेव ने एलौपैथिक को ‘स्टुपिड साइंस’ करार दिया था. वीडियो में रामदेव ने कथित रूप से कहा था कि रेमडेसिविर जैसी दवाएं कोरोना मरीजों का इलाज करने में असफल रही हैं. इन आरोप प्रत्यारोपों के बीच उत्तराखंड आईएमए ने रामदेव पर 1000 करोड़ रुपये का मानहानि का दावा किया था.