नई दिल्ली:- भूटान के बाद अब नेपाल ने भी पतंजलि को झटका दिया है। नेपाल के डिपार्टमेंट ऑफ आयुर्वेद एंड अल्टरनेटिव मेडिसिन ने कोरोनिल किट के वितरण पर रोक लगा दी है। यह किट योगगुरु रामदेव ने नेपाल को तोहफे में दिया था। नेपाल की तरफ से कहा गया है कि पतंजलि ने जिस कोरोनिल को Covid-19 से लड़ने में उपयोगी बताया है उसका वितरण नियमों के मुताबिक नहीं किया गया था।
नेपाल सरकार ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि कोरोनिल किट में शामिल टैबलेट और नजर ऑयल Covid-19 को हराने वाली अन्य दवाइयों के बराबर नहीं हैं। नेपाली अधिकारियों ने हाल ही में इंडियन मेडिकल एसोसिशन द्वारा कही गई उस बात का भी जिक्र किया है जिसमें एसोसिएशन ने रामदेव को चुनौती दी थी कि वो साबित कर के दिखाएं कि उनका प्रोडक्ट कोरोना से लड़ने में सक्षम है।
हालांकि, नेपाल में अभी पतंजलि ग्रुप का बड़ा कारोबार है। नेपाली सरकार का यह आदेश राजनीतिक विवादों में भी घिरता नजर आ रहा है। दरअसल नेपाल को कोरोनिल के यह किट पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हृदयेश त्रिपाठी और महिला और बाल विकास की इंचार्ज जूली महतो के कार्यकाल के दौरान मिले थे। जूली महतो के भाई उपेंद्र महतो बड़े उद्योगपति हैं और नेपाल में पतंजलि ग्रुप के पार्टनर भी हैं। नेपाल सरकार का कहना है कि यह किट उपहार के तौर पर दिये गये थे, इनके व्यवसायिक वितरण पर कोई फैसला नहीं किया गया है। जूली महतो और उनके पति रघुवीर महासेठ कोरोना पॉजीटिव भी हुए थे।
नवीनतम आदेश की व्याख्या ओली सरकार द्वारा पतंजलि समूह से दूरी बनाने के प्रयास के रूप में की जा रही। पिछले हफ्ते कैबिनेट फेरबदल के बाद, रघुवीर महासेठ को तीन उप प्रधानमंत्रियों में से एक नियुक्त किया गया है और वह विदेश मंत्रालय के प्रभारी भी हैं। शेर बहादुर तमांग ने नए स्वास्थ्य मंत्री के रूप में पदभार संभाला है। महतो और महासेठ नेपाल के प्रमुख मधेसी परिवार हैं और नेपाल में रामदेव की व्यावसायिक सुविधाएं भी ज्यादातर मधेस क्षेत्र में स्थित हैं जिन्हें तराई मैदान भी कहा जाता है।
यहां आपको बता दें कि इससे पहले भूटान ने भी अपने यहां कोरोनिल किट के वितरण पर रोक लगाई है। हाल ही में भूटान ड्रग रेग्यूलेटरी ऑथोरिटी ने इस दवा को वितरित किए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। हाल ही में बाबा रामदेव ने एलोपैथी दवाई को बकबास करार दिया था जिसके बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उनका विरोध किया था। बाद में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उत्तराखंड ब्रांच ने बाबा रामदेव पर 10 हजार करोड़ रुपये की मानहानि का दावा किया था। हालांकि, बाद में माफी मांग लेने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बाबा रामदेव के खिलाफ दायर याचिका को वापस लेने की बात कही थी।